संस्कृति बचायें
हमारी संस्कृति पूरे संसार में महान और सुंदर है, इसलिये तो भारत सदियों से आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है! हालांकि आधुनिकता की आँधी में लोग अपनी गरिमा को भूलते जा रहे हैं! नैतिकता और आदर्श मिटते जा रहे हैं, शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार और बडे बुजुर्गों के साथ अपमान की खबरें सामने आती रहती हैं जो हमारी संस्कृति को कलंकित करती हैं, टीवी में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों ने तो अश्लीलता की हद ही पार कर दी है!
इससे हमारी संस्कृति खतरे में पड़ जायेगी! इसलिये अपनी संस्कृति के प्रति सजगता बनाये रखने के लिए युवाओं को अग्रणी भूमिका निभानी पड़ेगी!
——- विजया लक्ष्मी
कम शब्दों में अच्छा विचार विजया जी लेकिन सिंघल श्रीमान जी की बातों का ख्याल जरूर रखें।
आपका लेख अच्छा है और उसमें व्यक्त किये गए विचारों से भी सहमत हूँ.
लेकिन इसमें भाषा की बहुत अशुद्धियाँ हैं, जो खटकती हैं. इसमें हर जगह ‘में’ को ‘मे’ लिखा गया है और ‘है’ तथा ‘हैं’ में कोई अंतर नहीं किया गया है. आप भाषा में लिंग भेद में भी विश्वास नहीं करतीं, ऐसा प्रतीत होता है. कृपया भाषा को सुधारें.
dhanybad sriman ji . aur jo ashudhi hai o type k karm me ho gyi hai . aage se is bat ka khyal rahegi
विजिया लक्ष्मी जी , छोटा लेख लेकिन अर्थ भरपूर . हमारी संस्कृति महान है लेकिन यह जो सब बदल रहा है यह सिर्फ दुनीआं एक ग्लोबल विलेज बन जाने की वजह से हो रहा है . पहले हज़ारों साल हम को पता ही नहीं था कि दुनीआं में और भी देश हैं . एक गाँव से दुसरे गाँव जाना भी एक बड़ी बात थी . अब हम घर बैठे ही internet पर दुनीआं घूम लेते हैं . पछमी देश कुछ ही समय में बहुत एडवांस हो गए जिस के कारण आजादी आ गई और इस अजादी ने हमारे देश पर भी असर डाला . हर युवा आजादी चाहता है और यह आजादी हमारे युवाओं को खूभ भाई है . फिर आर्थिक विवस्था पहले से बेहतर हुई है जिस से लक्षरी गुडज़ भी बड़ी हैं . अब दूर की बात किया करूँ मेरे ज़माने में गाँवों में लड़किओं को सकूल नहीं जाने दिया जाता था , इस को इज़त के खिलाफ समझा जाता था . अब लड़के लद्किआन हर जगह इकठे पड़ते हैं जिस से लड़के और लड़किओं की सोच में फरक आ गिया है . अब हम वैदिक काल में जा नहीं सकते.
ji sriman ji