मेरी माता कितनी भोली सिंह सवारी निकली डोली दैत्यों का संघार मां करती भक्तों का उद्धार मां करती जो भी इनके दर पे आता खाली झोली कभी न जाता मां का गुणगान हो रहा है मां का जयकारा गूंज रहा हैं जयकारा शेरावाली का जयकारा मेहरावली का मां आश लगा के आई हूं कब से […]
Author: बिजया लक्ष्मी
बाल कविता
नटखट बच्चे नटखट खेल कभी झगड़ते करते मेल इधर उधर ये खूब दमकते खेलों का नएं सृजन करते लुका छिपी , पकड़म पकड़ाई कभी कब्बड़ी कभी फुटबॉल तरह तरह के खेल से अपने सबके दिल मन को खूब भाते गोलू मोलू पीहू सब मिल खेल खेल में खूब इतराते दादाजी फटकार लगाते शाम को सब […]
मां गंगे
हे नीरझरनी पाप विनाशनी विनय करु मैं शीश झुकाई हो तुम्हीं सबके मोक्षदायिनी पतित पावन नाम है गंगा भागीरथी ने किया तप भारी जो लाए धरा सुरसरित गंगा पापियों के स्पर्श मात्र से पाप कटे मन शीतल होवे शंकर जटा में विराज रही मां भक्तों के कार्य सवारन वारे हे मंदाकिनी , हे ध्रुव नंदा […]
गुरु पूर्णिमा विशेष
गुरुओ के गुरू है शिवशंकर बिन गुरु ज्ञान न टूटे बंधन जो शिव को अपना गुरू बनावे सारे बंधन से मुक्त /हो जावे प्रथम गुरू मेरे माता पिता है जिसने मुझे चलना सिखाया दूसरा गुरू पाठशाला गुरु है जिसके आशीष सर पे धरा है तृतीय गुरु मेरे है शिवशंकर जिसकी कृपा से टूटे भव बंधन […]
सावन आया
सावन पावन महीना आया हरा भरा हरियाली छाई रिमझिम बारिश बरसे देखो पंख फैला मोर नाचे देखो झूला झूले कृष्ण कन्हैया राधे झूले बनके दुल्हनिया बृंदाबन में रास रचावे मधुबन के भीतर फल खावे शिवशंकर कैलाश से आवे धरती को धन्य धान्य बनावे बम बम कावरिया गुंज रही है बाबा का जयकार लगी है सबके […]
कविता
ये उम्र ने भी दस्तक क्या खूब दे रही है जिंदगी जीने की नई राहें दिखा रही है। ये गा रही तरानें क्या खूब झुम रही है मुस्किलो से लड़ने की नई बातें बता रही है। ये झिलमिल सितारे क्या रौशनी दे रही है ये कांटे भरी डगर पे रास्तें बता रही है। ये नभ […]
बाल कविता
बाल कृष्ण की है ये टोली ग्वाल बाल भी है सब भोले यमुना जी के तट पर जावे सखियों का सब चीर चुरावें माखन चुरा चुरा कर खावे राधा जी के मन को भावे मधुवन भीतर गैया चरावें सब मिलकर के रास रचावे लल्ला की ये नटखट खेल सब मिलकर रहते मेल। बिजया लक्ष्मी
कविता
खत लिखू या प्रीत लिखू ए सनम मैं क्या लिखू! देश जाऊँ या बिदेश जाउँ ए सनम मैं कहाँ जाउँ! पत्र भेंजू या तार भेंजू ए सनम मैं क्या भेंजू! तेरे बिन भींगी है आँखें नयन अधर पे लगी है प्यासे! आ जाओ तु मेरे गिरधर तुझे पुकारू राधा बनकर! मिली जब आँखें नयन निरालें […]
: दादी कहती थी
दादी कहती थी हमारे यहां लड़कियों को सर नहीं चढ़ाया जाता अच्छे संस्कार सिखो आज बेटी हो कल के बहू बनने हैं। दादी कहती थी बड़े को प्रेम करो छोटे को स्नेह करो अपने के बराबरी का सम्मान करो कूल का नाम रोशन करो। । दादी कहती थी कोई ऐसा काम न करो जिससे जग […]
बाल कविता
गोलू भोलू है दो भाई घर आंगन की ये किलकारी दादाजी को खूब मन भाते दादी के ये आंख के तारे साथ साथ स्कूल जाते आपस में ये कभी न झगड़े लूका छिपी का करते खेल फूट बाल है इनके प्रिय खेल प्यारे प्यारे बच्चे आते मिलकर खूब खेल जमाते खेलकुदकर जब थक जाते दादाजी […]