उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 47)
42. सफलताएँ
संभवतः समय स्वयं इस महामिलन की प्रतीक्षा में था, अंतरिक्ष इसी घड़ी की बाट जोह रहा था। देवलदेवी और धर्मदेव के आत्मिक और दैहिक महामिलन से पराधीन भारत का सुप्त पड़ा भाग्य अंगडाई लेकर जाग उठा।
वह नृशंस सुल्तान जिसने उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक समस्त भारतवर्ष को पदाक्रांत कर डाला था, रणथंभौर, चित्तौड़, मालवा, भिलसा, जालोर, अन्हिलवाड़, देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र और पांड्य राज्य – हर जगह उसने क्रूरता का खेल खेला था, सुंदर युवतियों को वेश्या बनाकर हरम में रखा, युवकों की हत्या करवाई और मंदिरों को खंडहर में बदल दिया था। वही सुल्तान जलोदर रोग से ग्रसित हो रोग
शय्या पर विवश लेटा था। रोग शय्या पर ही सुल्तान को खबर मिली, चित्तौड़ से राणा हम्मीर और देवगिरी से हरपाल देव ने मुस्लिम सेना को मार भगाया है। वह बड़ा चिंतित हुआ और इस अवस्था में उसने अपने वजीर मलिक काफूर और गुजरात के सुबेदार अल्प खाँ को दिल्ली में बुलवाया।
काफूर ने अलाउद्दीन को अपने प्रभाव में ले लिया उसके हृदय में सुल्तान बनने की जो इच्छा प्रमिला ने देवलदेवी की आज्ञा से जगाई थी वह अब प्रबल हो उठी। काफूर ने अलाउद्दीन को रोग शय्या पर ही विष दे दिया, जिसके प्रभाव से सुल्तान अलाउद्दीन अपने पापों की गठरी अपने सिर पर रखे 1 जनवरी 1316 को संसार से रूखसत हो गया।
सुल्तान की मृत्यु होते ही मलिक काफूर ने सल्तनत की वास्तविक सत्ता अपने हाथ में लेते हुए उसने सुल्तान के छः साल के लड़के शहाबुद्दीन को नाममात्र का सुल्तान बनाया। सुल्तान की विधवा बेगमों से काफूर ने बलात्कार किया और उन्हें अपनी दासी बनाया। उनमें मलिका-ए-जहाँ (जलालुद्दीन फिरोज की पुत्री) और मलिका-ए-हिंद (रानी कमलावती) प्रमुख थी। इस तरह उस कुलटा चरित्रहीन, पतिद्रोही, धर्मद्रोही, देशद्रोही और पुत्रीद्रोही रानी को समुचित पुरस्कार मिल गया।
काफूर के इन कृत्यों का देवलदेवी और हसन (धर्मदेव) सूक्ष्मता से निरीक्षण करते रहे और परोक्ष रूप से उसकी सहायता करते रहे।