कथा साहित्यसंस्मरण

आज

आज 20/3/2015 सुबह सुबह की वार्तालाप ….. इसी माह माँ की पुण्यतिथि थी न …. किस दिन थी ….. हाँ थी तो …. किस डेट को ….. अच्छा ये बताइए …. आज क्या है ….. आज क्या है …. आज क्या है ….. हाँ बोलो ना , आज क्या है …… हाँ बोलिए न , आज क्या है ……. आज 20 मार्च है , 20 मार्च है और क्या है ……. हा हा हा हा हा , आज आपकी माँ का जन्मदिन है ….. जिसे वर्षो मनाते रहे वो जन्मदिन ….. दो-तीन साल में पुण्यतिथि भूल गये तो क्या हुआ ….. व्यस्त जिन्दगी , ढेरों उलझन कैसे याद रख लेती हो सब ….. जानते हैं ….. मेरे दादा जब खाना खाने बैठते थे तो …. दो बिल्लियाँ … थाली के ठीक सामने बैठती थी …. एक कुत्ता दरवाजे पर …. बैलों की जोडी ….. गाय उसका बच्चा …..
आठ से दस रोटियां दादा के खाने समय , उनके थाली में अधिक रखा जाता था …..
आज जब सुनती हूँ कि किसी के घर में बुजुर्ग के लिए ; खाना बनाना मुश्किल है , तो आश्चर्य होता है …..
समाज की उन्नति हो गई है ….. आधुनिक हो गया है …..

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “आज

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब, विभा जी. आपने कम शब्दों में हमारी पीड़ा को बयान किया है.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      शुभ प्रभात ….. बहुत बहुत धन्यवाद भाई

  • विभा बहन, समाज की उन्ती तो बहुत हो गई , सही कहा आप ने . यह तो नहीं कहूँगा कि सभी बज़ुरग भुला दिए गए हैं लेकिन आज हमें अपने बच्चों के जनम दिन का तो खियाल रहता है लेकिन जिन माता पिता को कभी मदर्ज़ डे फादर्ज़ डे पर याद करते थे , अब भूलने लगे हैं .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      शुभ प्रभात भाई …… बहुत बहुत धन्यवाद आपका ….

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