बालमन
इलाहाबाद की झांकियों के बारे में तो बहुत कुछ सुन रखा है | पिता जी क्या हम सब भी चले आपके साथ |
“दादू मैं भी चलूँगा |” अंकित मचल उठा |
मेले में मस्ती करते हुए सारी झाँकियो के बारे में दादू से पूछता रहा ” ये कौन , ये कौन दादू बताओं न |”
माँ ने एक बार डाँटते हुए कहा ” दादा जी को परेशान नहीं करते बेटा |”
तुरंत दादा जी ने कहा “कोई बात नहीं बहू | मैं परेशान नहीं हो रहा बल्कि खुश हूँ कि इसे रूचि है “रामायण” में |”
तभी छोटे से हनुमान और बड़े से राम का स्वरूप देख बड़े आश्चर्य से अंकित बोला –
” दादू , आप तो कहें थें हनुमान ने राम और लक्ष्मण दोनों ही को कंधे पर बैठाया था | पर इतने छोटे से हनुमान कैसे उठा पाएंगे | मम्मी तो मुझे डांटती है जब मैं अपनी बहन को उठाता हूँ | कहती है अभी गिरा देगा उसे | लिटा के पालने में ही खेल उससे | फिर इन्हें नहीं डांट पड़ी |”
यह सुनते ही सभी ठहाका मार पड़े |
हनुमान बने स्वरूप ने भी सुनकर मुहं बना लिया | जैसे कह रहा हो ये बड़े लोग नहीं समझते हम बच्चे ज्यादा समझदार है | इन्हें तो श्रधा की आँखों ने अँधा कर दिया है और मुझे आइसक्रीम की लालच ने | आइसक्रीम …वाव यम्मी ….जीभ फिरा दी ओठों पे | जैसे आइसक्रीम का स्वाद ओठों पर आ गया हो |
आइसक्रीम का स्वाद क्या शायद वह घंटो खड़े रहने से पैरों के दर्द से निकली आह जीभ से अन्दर खींच रहा था |
— सविता
bahut badhiya
बच्चों की मानसिकता का अच्छा प्रदर्शन है यह लघु कथा !
बहुत खूब .