लघुकथा

बालमन

इलाहाबाद की झांकियों के बारे में तो बहुत कुछ सुन रखा है | पिता जी क्या हम सब भी चले आपके साथ |
“दादू मैं भी चलूँगा |” अंकित मचल उठा |
मेले में मस्ती करते हुए सारी झाँकियो के बारे में दादू से पूछता रहा ” ये कौन , ये कौन दादू बताओं न |”
माँ ने एक बार डाँटते हुए कहा ” दादा जी को परेशान नहीं करते बेटा |”
तुरंत दादा जी ने कहा “कोई बात नहीं बहू | मैं परेशान नहीं हो रहा बल्कि खुश हूँ कि इसे रूचि है “रामायण” में |”
तभी छोटे से हनुमान और बड़े से राम का स्वरूप देख बड़े आश्चर्य से अंकित बोला –
” दादू , आप तो कहें थें हनुमान ने राम और लक्ष्मण दोनों ही को कंधे पर बैठाया था | पर इतने छोटे से हनुमान कैसे उठा पाएंगे | मम्मी तो मुझे डांटती है जब मैं अपनी बहन को उठाता हूँ | कहती है अभी गिरा देगा उसे | लिटा के पालने में ही खेल उससे | फिर इन्हें नहीं डांट पड़ी |”
यह सुनते ही सभी ठहाका मार पड़े |

हनुमान बने स्वरूप ने भी सुनकर मुहं बना लिया | जैसे कह रहा हो ये बड़े लोग नहीं समझते हम बच्चे ज्यादा समझदार है | इन्हें तो श्रधा की आँखों ने अँधा कर दिया है और मुझे आइसक्रीम की लालच ने | आइसक्रीम …वाव यम्मी ….जीभ फिरा दी ओठों पे | जैसे आइसक्रीम का स्वाद ओठों पर आ गया हो |

आइसक्रीम का स्वाद क्या शायद वह घंटो खड़े रहने से पैरों के दर्द से निकली आह जीभ से अन्दर खींच रहा था |

— सविता

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

3 thoughts on “बालमन

  • उपासना सियाग

    bahut badhiya

  • विजय कुमार सिंघल

    बच्चों की मानसिकता का अच्छा प्रदर्शन है यह लघु कथा !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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