कमीज़…..!
मुहब्बत ने मुहब्बत को मुहब्बत से नहीं देखा,
फटी कमीज़ तो देखी मगर इंसान नहीं देखा….!
सोचता हूँ आज तो हंसी उन्मुक्त आती है,
एक कमीज़ भी सूरत इंसान की दिखा जाती है..!!
जलाई थी हथेलियां कि उनकी आह तो निकले,
जमीं थी जो बर्फ दिल में कि ऐ ! काश वो पिघले..!!!
याद है मुझको मुहब्बत की वो रुसवाई,
तेरी महफ़िल की वो हुई जग हंसाई…!!!!
झुके सर, भरे अश्कों की आँखे याद हैं मुझको,
गुजर जाये कई जन्म मेरे न भूल पाउँगा तुझको…!!!!!
“अंतिम पग” पर पड़ा था जब ये पग मेरा,
एक अक्स सा उभरा था ये चेहरा तेरा…!!!!!!
वो सिर्फ कमीज़ नहीं मेरे वज़ूद का हिस्सा है,
मेरी बेपनाह मुहब्बत का अमर किस्सा है…!!!!!!
वाह वाह .
बहुत अच्छे शेर !