कविता : अब क्या लिखूं
चाहूँ तो लिखना
मगर अब क्या लिखूँ,
शब्द गूँगे हो गए हैं,
गीत सारे सो गए हैं,
तुम गए तो यूँ लगा ज्यूँ,
नभ से तारे खो गए हैं,
फिर से कोई तान छेड़ूँ,
एक नव कविता लिखूँ,
चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,
आहत सी हर संवेदना है,
अकथ्य मेरी वेदना है,
अभिमन्यु की भाँति अकेले,
चक्रव्यूह को भेदना है,
अपने हर एक रक्त कण से,
तेरी जय गाथा लिखूँ,
चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,
उत्तप्त आँधी चल रही है,
लौ हृदय में जल रही है,
कुछ अँधेरा कुछ उजाला,
चंद्रिका भी छल रही है,
स्वप्न का अनुगामी बनकर,
तुमको स्नेह सरिता लिखूँ,
चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,
ना हो बाधा शैल वन की,
ना दीवारें मध्य तन की,
मौन के पथ से करो तुम,
यात्रा यह मन से मन की,
निमंत्रण दे प्राण का मैं,
तुमको अभिलाषा लिखूँ,
चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,
— भरत मल्होत्रा
बहुत खूब .
बहुत सुन्दर कविता !