कविता : राह कठिन थी…
जिसके जितने पास गए
उससे उतने दूर हुए
राह कठिन थी चलते चलते
एक दिन थक के चूर हुए
आस का दीपक जलते जलते
जला गया मेरा घर
सोच लिए हम शायद
वक्त के हाथो तुम मजबूर हुए
दूर हुए तुम ऐसे
जैसे प्रेम समर्पण भूल गए ।
जिसके जितने पास हुए
उससे उतना दूर हुए ।
— धर्म पाण्डेय
जिसके जितने पास हुए
उससे उतना दूर हुए । वाह बहुत ही सुन्दर!
बहुत अच्छी कविता है.
वाह वाह ! बहुत ख़ूब ! !