सब कर्मो के फल मिलते हैं
सब कर्मो के फल मिलते हैं
इसीलिए बस छल मिलते हैं
मिलकर भी बस एक बचेगा
कब अग्नि और जल मिलते हैं
केवल मृग-तृष्णा है वह बस
जब नभ और थल मिलते हैं
अनुरंजन बस अभिलाषा है
जहाँ स्मृति के पल मिलते हैं
कुछ उत्तर हैं सरल बहुत पर
कब प्रश्नों के हल मिलते हैं
अभिवृत | कर्णावती | गुजरात
बहुत ही सुन्दर गजल! महोदय आपका अभिनन्दन!
आपका हार्दिक आभार जवाहर जी
बहुत सुंदर ग़ज़ल !
आपका बहुत बहुत शुक्रिया विजय जी