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आरण्यक ग्रन्थों की आवश्यकता

आरण्यक ग्रन्थ की आवश्यकता क्यों अनुभव की गई थी? ‘आरण्यक’ शब्द का अर्थ है- अरण्य में होने वाला। वन में होने वाले अध्ययन. अध्यापन, मनन, चिन्तन से सम्बन्धित विषयों का संकलन जिस ग्रन्थ में किया गया हो उसे आरण्यक कहते हैं।

आरण्यक ग्रन्थों की रचना नैसर्गिक प्रक्रिया के अनुसार ब्राह्मण ग्रन्थों के बाद हुई है। वेदों में वर्णित कर्मकाण्ड अर्थात् यज्ञ प्रणाली अत्यन्त जटिल होती जा रही थी। आत्मिक शान्ति के लिए अध्यात्म की आवश्यकता अनुभव की गई। यह भी कारण रहा कि स्थूल द्रव्यमय यज्ञ से लोगों को सूक्ष्म आध्यात्मिक यज्ञ की ओर ले जाने की थी आवश्यकता ऋषियों ने समझी थी। इसका एक कारण यह भी था कि यज्ञ गृहस्थ के लिए थे, वानप्रस्थ और संन्यासियों के लिए यज्ञ आवश्यक न होने के कारण आत्मतत्त्व और ब्रह्मविद्या के ज्ञान के लिए अध्यात्मपरक ग्रन्थों की आवश्यकता थी।

आरण्यकों का महत्त्व – वैदिक वाङ्मय में आरण्यकों के महत्त्व को प्रकट करने वाले निम्न कारण हैं-
१- आरण्यक ब्राह्मण ग्रन्थों और उपनिषदों को जोड़ने वाली कड़ी हैं। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणग्रन्थों में दर्शित यज्ञों के आध्यात्मिक पक्ष को विस्तार दिया गया है।
२- सकाम से निष्काम की ओर प्रवृत्ति- उस समय किये जाने वाले श्रौत यज्ञ आदि सकाम कर्म थे। गृहस्थ के लिए तो ये कर्म आवश्यक थे परन्तु वानप्रस्थी और संन्यासी के लिए हेय होने के कारण आरण्यकों की आवश्यकता हुई।
३- दार्शनिक चिन्तन- आरण्यकों में यज्ञ-प्रक्रिया के दार्शनिक पक्ष का विवेचन किया गया है।
४- वेदों का नवनीत- महाभारात में कहा गया है कि आरण्यक ग्रन्थ वेदों के सारभाग हंै।
​नवनीतं यथा दध्नो मलयाच्चन्दनं यथा।
​आरण्यकं च वेदभ्य ओषधिभ्योऽमृतं यथा।।

आरण्यकों और उपनिषदों में अन्तर– आरण्यकों और उपनिषदों में विषय में समानता होने के बावजूद भी यह अन्तर है कि आरण्यकों में मुख्य विषय प्राणविद्या और प्रतीकोपासना है, जबकि उपनिषदों में निर्गुण ब्रह्म और उसकी प्राप्ति के विषय में विवेचन मुख्य है।
वर्तमान में उपलब्ध आरण्यक ग्रन्थ-
१- ऐतरेय आरण्यक- यह ऐतरेय ब्राह्मण का ही परिशिष्ट भाग है। यह ऋग्वेदीय आरण्यक है।
२- शांखायन आरण्यक- ऋग्वेदीय आरण्यक है।
३- बृहद्दारण्यक- शुक्ल यजुर्वेद से सम्बन्धित है।
४- तैत्तिरीय आरण्यक-यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा से सम्बन्धित है।
५- मैत्रायणी आरण्यक यह कृष्ण यजुर्वेदीय मैत्रायणी शाखा से सम्बन्धित है।
६- तवलकार आरण्यक सामवेद की जैमिनीय शाखा से सम्बन्धित है।

आरण्यकों के रचयिता – अधिकांश आरण्यक ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थों के अन्तिम भाग हैं। अतः ब्राह्मण ग्रन्थों के रचयिता ही आरण्यकों के भी रचयिता माने जाते हैं। इसके कुछ अपवाद भी हैं।

कृष्ण कान्त वैदिक

2 thoughts on “आरण्यक ग्रन्थों की आवश्यकता

  • विजय कुमार सिंघल

    हमने सुना तो था कि आरण्यक ग्रन्थ भी हुआ करते हैं. पर इंक विस्तृत जानकारी इसी लेख से प्राप्त हुई. धन्यवाद.

  • Man Mohan Kumar Arya

    धन्यवाद महोदय। पूरा लेख पढ़ा. अंत में पूर्व के कुछ भाग की पुनरावृत्ति हो गई है। लेख पढ़ कर यह जिज्ञासा बनी हुई है कि क्या यह ६ आरण्यक पुस्तकाकार हिंदी अनुवाद सहित उपलब्ध हैं? यदि हैं तो प्रकाशक कौन है ? यदि ज्ञात हो तो कृपया बताएं कि आर्य समाज में आरण्यक ग्रंथों की उपेक्षा क्यों है? मेरा अनुमान है कि आरण्यक ग्रंथो का पठान पाठन में कहीं प्रावधान नहीं है। पुनः धन्यवाद।

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