शहीदी दिवस और अखण्ड भारत का सपना
जिन अंग्रेजों और उनके विचारों के विरुद्ध वीरों ने जान गंवाई थी, जिन के बर्बर कुशासन से देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुतियाँ दी थी, कुछ सपने संजोये थे देश की एकता अखंडता के लिए वही भारत शहीदों के सपनों का भारत तो नहीं बन सका पर, उन अंग्रेजों के सपनों का विखंडित भारत निश्चय ही बनकर रह गया |
उनकी तो योजना थी कि भारत को ५६५ सियासतों जैसे टुकड़ों में बांट दिया जाय ताकि भविष्य में कभी भी एकजुट शक्ति-सम्पन्न राष्ट्र के रूप में चुनौती नहीं दे सके | और इसी योजना के तहत ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सियासतों को खुली छूट दी गयी कि वे सियासतदान चाहें तो भारत में विलय करें या स्वतंत्र रहें | जिसका खामियाजा कश्मीर के रूप में सामने है | अंग्रेजों की गुलामी से जितने भी देश आजाद हुए प्राय: सभी टुकड़ों में बंटते गये |
आज शहीदी दिवस के अवसर पर नतमस्तक हो शर्म से कहना पड़ता है कि देश पुन: उन्हीं के विभाजक नीतियों के पथ पर दौड़ा चला जा रहा है | इस अंधी दौड़ की प्रतिस्पर्धा में विकास का जामा पहनाकर एक खाका के रूप में १४ दिसम्बर’ १९९४ को विश्व व्यापार संगठन द्वारा प्रायोजित षड्यंत्र (गेट) के मकडजाल में फंसकर हस्ताक्षर किये गये | जो उनकी नीतियों को और अधिक पुष्ट करता है |
यूँ तो इसकी शुरुआत आजादी के सशर्त समझौते के रूप में कुछ सत्तालोलुप नेताओं द्वारा विरोध के वावजूद भी सत्ता ह्स्तान्तरण के रूप में स्वीकार किया जाना भी था |
किसी भी देश की अखंडता के लिए भाषा, जाति-सम्प्रदाय और क्षेत्रवाद जहाँ आवश्यक है वहीं बहुत बड़ा खतरा भी है | ये तीनों दुधारी तलवार हैं | ऐसे दुधारी तलवार पर अत्यधिक सावधानी की आवश्कता है जिस पर आज तक कभी भी गम्भीरता से विचार नहीं किया गया और न ही देश को लूटनेवाली सत्ता को और न ही किसी बौद्धिक क्षमतावान देश के तथाकथित आजाद नागरिकों को व्यैक्तिक धनोपार्जन और चाटूकारिता से फुर्सत ही नहीं मिल पाया |
आजादी के बाद से आज तक किसी भी राष्ट्र के लिए राष्ट्र-गान, राष्ट्रीय भाषा और राष्ट्रीय धर्म तक को स्पष्टतया परिभाषित नहीं किया जा सका | जबकि विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जिसकी कोई राष्ट्र भाषा, राष्ट्रीय धर्म और राष्ट्रीय गीत नहीं रहां हो |
आज भी देश में, विदेशों में गुलामी के गीत शान से गाये जाते हैं और हम गुलाम के रूप में नचाये जाते हैं | जिसे आज राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त अंगरेजी भाषा गुलामी का एहसास कराती है |
इतने पर भी शतरंज के खिलाड़ी देश को खंडित करने के मोहरों की चाल से बाज नहीं आ रहे | जब आधार हो आर्थिक आधिपत्य का | “दुनिया का दरोगा” बनने का दम्भ |
इन सारे तथ्यों के विरुद्ध यूँ ही नहीं प्राणों की आहुति दी थी | उन शहीदों का भी तो कुछ स्वतंत्र देश का सपना रहा होगा |जो आजादी के बाद से अबतक शीशे की तरह टूटकर बिखरते जा रहे हैं |
वर्तमान में किस्स्नों की समस्याएं, देश को बीमार रखकर चिकित्सा उद्योग द्वारा आर्थिक दोहन का षड्यंत्र, भारतीय संस्कृति को दीषित करने का प्रयास, भाषा के नाम पर अंग्रेजियत को सम्मान अदि आदि षड्यंत्र जारी हैं साथ ही राष्ट्रीयता की पींगें मारनेवाले नेताओं में चरित्रहीनता और स्वार्थ तत्परता की अनिवांशिक रोग से ग्रस्त हों |
आज जरूरत देश को जगाने का, आम लोगों में जागृति पैदा करने की नितांत आवश्यकता है न कि किसी बंद कमरे में गुनगुनाने का |
अब प्रश्न यहाँ खड़ा होता है कि – आखिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे | इस यज्ञ में आहुति तो वही दे सकता हो जिसे अपने राष्ट्र से निस्वार्थ प्रेम हो | इस पुनीत कार्य में भाषा का सबसे पहला स्थान है, जो आम लोगों की समझ में आ सके | इसके लिए क्षेत्रीय भाषाओं के साथ विशेषकर हिन्दी का बड़ा महत्व है | साथ ही हमारे धर्मगुरुओं को पुन: वहीं लौटना होगा जहाँ से मौत का डर समाप्त हो जाता है और जिस ज्ञान के बदौलत वीरों ने अपने जान की कुर्बानी दी थी | धन्यवाद |
श्याम “स्नेही” शास्त्री
गुडगाँव, हरियाणा
बढ़िया लेख !
अंग्रेजों ने तो ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय ही फाड़ो और राज करो का नियम बना लिया था लेकिन कई दफा बुराई से भी कुछ मिल जाता है. अंग्रेज न आते तो शाएद हम मुसलमानों के गुलाम होते और शाएद सभी इस्लाम धर्म ग्रैह्न्न कर गए होते . आज जो भारत बड़ा देश है जिस में आजादी की सांस ले रहे हैं यह अंगेजों के कारण ही संभव हुआ है . अंग्रेजों ने तो अभी नया नया पार्लिमैन्त हाऊस बनाया था , अपने राज को और मज़बूत करने के लिए लेकिन अंग्रेजों की बुरी किस्मत के कारण सैकंड वर्ल्ड वार शुरू हो गई और अँगरेज़ बैंक्र्प्त हो चुक्के थे और भारत छोड़ कर भागने को तैयार थे . यह जो कश्मीर का मसला है नेहरू पटेल का कहा मानं जाते तो यह सब कुछ न होता , फिर भी हमारे पास बहुत कुछ है.