उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 50)
45. हसन और मुबारक
मुबारक, अलाउद्दीन का चौथा पुत्र था। अपने से बडे़ तीनों भाइयों की दुर्दशा देखकर उसे बड़ा खौफ हुआ। अपने प्राणों या अंग-भंग किए जाने की उसे बड़ी चिंता थी। इस अव्यवस्था में उसे अपने विश्वासपात्र हसन से बहुत आशा थी। इस वक्त वह अपने दोनों हाथ सीने पर रखे बेचैनी से टहल रहा था।
उसे इस तरह टहलते देखकर हसन बोला, ”शहजादे हुजूर, आप इस कदर बेचैन न होइए, जब तक आपका यह सेवक जीवित है आपकी कुछ भी हानि नहीं हो सकती। मैं अपनी जान देकर भी आपकी हिफाजत करूँगा।“
मुबारक, हसन के कंधे पर हाथ रखकर बोला, ”हसन, आज एक तुम्हारा ही सहारा है, लेकिन यह काफूर उसका खौफ हम पर वारी है। कभी-कभी लगता है काफूर मेरे सामने खड़ा है और जबरन मेरी आँखें निकाल रहा है।”
बात-बात करते मुबारक उछल पड़ता है, उसे उछलता देखकर हसन बोला, ”क्या हुआ शहजादे? आप परेशान क्यों हो गए?“
मुबारक ने डरते हुए कक्ष के द्वार की तरफ इशारा किया। हसन ने पलटकर देखा, वहाँ काफूर खड़ा था साथ में कुछ सैनिक। हसन हँसते हुए बोला ”आओ वजीरेआला, मिजाज कैसे है आपके?“
”हसन, हमारे मिजाज की फिक्र न करो और हमें सुल्तान कहने की आदत डालो।“
”ऐ… सुल्तान? वह कैसे वजीरेआला? सुल्तान तो शहाबुद्दीन है।“
”कौन शहाबुद्दीन, जिसका सिर हम अभी उस गर्दन से अलग करके आ रहे हैं। और अब इस मुबारक की बारी है। तुम रास्ते से हटो और इस मुबारक को हमारे हवाले करो।“
”मुआफ करें वजीरेआला, शहाबुद्दीन को मारकर आपने शहजादे मुबारक का काम आसान कर दिया है, यकीनन शहजादे अब सुल्तान बनेंगे।“
”यह शहजादा, इसे कौन बनाएगा सुल्तान?“
”हम वजीरेआला, हम बनाएँगे इसे सुल्तान।“ हसन हँसते हुए बोला।
”तो ठीक है“, काफूर हसन पर तलवार चलाकर बोला, ”पहले तुझे ही जहन्नुम भेजता हूँ।“
दोनों योद्धा एक-दूसरे पर घातक वार करने लगते हैं। काफूर, हसन के सिर को देखकर तलवार चलाता है; किंतु हसन फुर्ती से घूम गए। इससे तलवार उनके कंधे को छूकर हवा में घूम गई। इस समय हसन ने तीव्रता से तलवार काफूर पर मारी। काफूर ने उसे उछलकर अपनी तलवार पर लिया। पर काफूर की तलवार दो टुकड़े होकर जमीन पर गिर गई। और काफूर उस हमले से फिसलकर गिर पड़ा। काफूर के सीने पर अपना पैर रखकर हसन ने उसकी गर्दन को चीर दिया। काफूर को चीखने का भी अवसर नहीं मिला।
मुबारक के चेहरे का तनाव कम हो गया। काफूर के साथ आए सैनिकों को देखकर हसन बोला ”सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह…“ सैनिक बोले, ”जिंदाबाद।“
तभी मुबारक बोला, ”वजीरे आला खुशरद शाह जिंदाबाद।“ और हसन ने मुबारक के सामने ‘सुल्तान आपकी इनायत’ कहकर सिर झुका दिया।
जिस तरह देवल देवी और धर्मदेव (उर्फ़ हसन) ने एक एक करके अपनी राह के काँटों को दूर किया और खिलजी वंश का खात्मा किया, वह तारीफ के योग्य है.