नित्य नई मैं…
नित्य नई मैं
विषय बनूंगी
लिखो काव्य
मैं वेदना हूँ
सात सुरो में
राग जिन्दगी
छेडो तान
मैं वन्दना हूँ
सरल सुन्दर
जीवन पथ पर
बढे चलो
मैं प्रेरणा हूँ
तुमसे मैं हूँ
मुझसे तुम हो
पूर्ण हो तुम
मैं अन्नपूर्णा हूँ
चाह यही
उर में बस जाऊँ
करो प्रेम
मैं प्रेम लता हूँ
करो तपस्या
शांति स्थापना
करूंगी मैं
तेरी साधना हूँ
नील गगन में
चलो उड़ चले
डरो नहीं
मैं हौसला हूँ
रंग हीन जो
चित्र दिखेंगे
भरो रंग
मैं चित्रकला हूँ
सॄष्टि का हम
सर्जन कर दें
तुम पुरूष
मैं प्रकृति धरा हूँ
कविता अच्छी लगी। धन्यवाद।
बहुत सुन्दर कविता !