मजदूर
चिलचिलाती धूप में पसीना बहाते हुए,
गरजते मेघो के साथ झगड़ते हुए,
चमचमाती बिजली को सहते हुए ,
बादलों से बरसते पानी में भिगते हुए।
अपने बीमारी को दिल में छुपाते हुए,
घर के सारे कामों को निपटाते हुए,
मालिकों की डाट-फटकार सुनते हुए,
मैं मजदूरों को देखीं मजदूरी करते हुए ।
———-निवेदिता चतुर्वेदी
श्रम करना गलत नहीं है, आवश्यक भी है. लेकिन श्रमिकों का शोषण किसी भी स्थिति में नहीं होना चाहिए.
अच्छी कविता.
धन्यवाद श्रीमान जी आपका आभार।
मजदूर सर्वोपरि है लेकिन कष्ट तब होता है जब मजदूरों का शोषण एक मानव के हाथों होता है।एक मानव ही मानवाधिकार को भूल जाता है। एक मजदूर के श्रम को अच्छे तरीके से चित्र उकेरा निवेदिता जी।
धन्यवाद श्रीमान जी।
आपकी श्रमिको के प्रति हमदर्दी को प्रणाम करता हूँ। मैं भी एक ऐसे श्रमिक व उनकी पत्नी को जानता हूँ जिन्होंने रुखा सूखा खा कर व भूखे रहकर व उपवास कर अपने ४ बच्चों का पोषण किया और ३ को ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट बनाया और एक संतान को इंटर व आशुलीपी का कोर्स कराया। जब बच्चे माता पिता को सुख देने की स्थिति में आये तो वह संसार से विदा हो गए। देश व संसार के निर्माण वा उन्नति में मजदूरों का बहुत योगदान है। सभी मजदूरों को नमन एवं आपको धन्यवाद।
स्वागत है शुक्रिया श्रीमान जी।