कहानी

पाप

अरे इतने बङे समाज मे क्या एक लङकी नही मिल रही मेरे महेश के लिये ? सुजाता को बहुत गुस्सा आ रहा था।सुरेश 40 साल का होने को आया था और उसकी शादी नही हो पा रही थी।तभी सुरेश के पापा को उनके दोस्त का फोन आया बोले एक लङकी है गांव मे पली बढी हे और कम पढी लिखी है।
उसके पिता ने कहां चलेगी।
परंतु,,,
परतुं क्या यार?
वो लोग 20 लाख रुपये मांग रहे है।
20लाख!यार ज्यादा नही है।और फिर ब्रोकर भी तो अपना कमीशन लेगा..
हाँ वो तो है, पर इससे कम में वो मान नही रहे।
काफी बहस करने पर भी जब बात नही बनी तो सुरेश के पिता ने फोन रख दिया।
इधर 20 लाख सुनते ही सुजाता की तो आंखे फटी ही ही रह गई।आधी से ज्यादा कमाई तो उनके दूसरे बेटे को अमेरिका पढाने मे लग गई थी।और वो भी वहां किसी अमेरिकन लङकी से शादी करके बस गया था।आज 10 साल हो चुके थे वो वापस ही नही आया हां कभी कभार उसका फोन जरुर आ जाता था हाल चाल पूछने को।
और इधर इनका ये बेटा गलत राह पकङ चुका था।दिनोंदिन उसकी हालत गंभीर होती जा रही थी।डाक्टरों ने उसे एड्स रोगी घोषित कर दिया था।उसके ईलाज का खर्चा भी भारी पङ रहा था।दिन रात बस परेशानीयों में ही गुजर रहे थे।
वो 20 लाख एंव सुरेश की बिमारी उसके के पिता को ज्यादा चिंतित कर गई और उन्हें कुछ ही दिनो मे तीसरा अटैक आया वो इस दुनिया से चल बसे।अपने बेटे को अमेरिका से बुलाया तो उसने कुछ पैसे भेज दिये ये कहकर की वो काम मे इस तरह फसां हुआ है कि आ नही सकता।
पिता के अंतिम दर्शन करने को भी उसका मन नही हुआ सुजाता का ये सोच सोचकर बुरा हाल हुआ जा रहा था।क्या मात्र रुपये भेजना ही अब उसका कर्तव्य रह गया था।
इधर सुरेश की हालात भी दिनोदिन और खराब होती जा रही थी।किससे कहे अपने मन की पीङा कौन समझेगा उसके दर्द को ।अगर आज उसकी बेटी होती तो शायद वो उसका दर्द समझा पाती।संभाल लेती अपनी मां को इन विपरित परिस्थितियों में । हौंसला बढाती अपनी मां का।
किन्तु …
किन्तु उस बेटी को तो उसने खुद ही अपनी कोख में मार डाला था।उस बेजुबान की हत्या करवा दी थी जब पता चला की उसके पेट में बेटी है।कैसी निर्दयी मां थी मै अपनी कोख में ही भेद कर गयी।
आज बेटी जन्म नही लेगी तो कल दिन बहुऐं भी कैसे मिलेगी? फिर तो बेटे गलत रास्ते पर जाने ही है ना।आज उसे सब समझ आ रहा था पर अब बहुत देर हो चुकी थी।ये उसका किया हुआ पाप ही था जिसका फल आज उसके सामने आ रहा है

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com

One thought on “पाप

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कहानी !

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