कविता

स्वच्छता अभियान

सुबह सवेरे जब कल्लू नाई ने दाढ़ी बनाते वक्त मुझे बताया,

कि कुछ जनप्रतिनिधियों ने अपने मोहल्ले मे भी स्वच्छता अभियान का आयोजन है करवाया,
तो दिल मेरा हर्षाया ।

लगा कि, अखबार मे छपने की अपनी इच्छा का वक्त है आया।

नियत समय पर मैंने एक पुराना कुर्ता निकला जिसे मैंने होली के लिये बचा रखा था,

बीवी की तेज तर्रार पोछा खोजी नजरों से जिसे छिपा रखा था ।

पुराना कुर्ता इसलिए कि सफाई अभियान मे जा रहा था किसी की बारात में नहीं।

नया कपड़ा पहन कर कोई झाड़ू उठाता है कहीं !

सज धज कर मैं मोहल्ले के उस स्थान पर जा पहुँचा जहाँ अक्सर कूड़े का ढेर लगा रहता था,
कुत्तों का, सुवरों का अखाड़ा जमा रहता था।

मेरे हिसाब से मोहल्ले में वही सबसे उपयुक्त स्थान था,

सफाई करने के लिये यहीं पर कुछ सामान था।

हर घूरे के दिन फिरते हैं, उस हिसाब से भी दिल वहीं पर टिका
पर, वहाँ आयोजन जैसा कुछ भी ना दिखा।

सोचा कि हर सरकारी आयोजन की तरह हो सकता है देर से शुरू हो,
तभी उधर से गुजरते हुए एक सज्जन ने मुझे देखा और पूछ बैठे कि कैसे खड़े हो?

मैंने उन्हें स्वच्छता अभियान के बारे मे बताया,
वो पहले मेरी नादानी पर हँसे फिर मुझे समझाया

यहाँ कहाँ खड़े हैं, इसके लिये कम्यूनिटी पार्क मे जाइए

वहीं आयोजित है वो अभियान, आप भी हाथ बँटाइये।

पार्क ! वहाँ क्या है साफ करने को, मैंने आश्चर्य जताया

तो उन्होंने मुझे वहीं जा कर देखने की सलाह दी और आगे बढ़ गये
हम भी उनकी नेक सलाह मान एक रिक्शे पर चढ़ गये।

पार्क मे कुछ सफेदपोष नेताओं की टोली हाथ मे झाड़ू लिये खड़ी थी,

जिनके कपड़ों की सफेदी बगुलों से होड़ लेने पर अड़ी थी।

कुछ पत्रकार हर कोण से उनके चौखटों से कैमरों को ऐसे भर रहे थे,

मानो उनके अखबार के पाठक गण ये सब देखने के लिये मर रहे थे।

पार्क के एक कोने मे चाय नाश्ते का बंदोबस्त था
जहाँ एक आदमी इंतजाम में मस्त था।

मै अभी शिरकत करने की सोच ही रहा था कि,
एक आदमी काँधे पर एक डिब्बा उठाए हुए आया
और डिब्बे के अवयव को झाड़ू धारकों के सामने गिराया।

कूड़ा देखते ही वे नेतागण ऐसे टूट पड़े,
जैसे विपक्ष में सरकार बनाने को लेकर फूट पड़े।

कूड़े को उन्होंने आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ घुमाया,
पर किसी ठिकाने न लगाया,
कैमरे वालों ने भी दौड़ दौड़ कर हर कोण से अपना फर्ज निभाया ।

कोई बीस मिनट तक कूड़े से जूझने के बाद उन्होंने झाड़ू को दीवार से टिकाया

और चाय-नाश्ते के पण्डाल की तरफ कदम बढ़ाया ।

पीछे पीछे मीडिया और आयोजकों का तबका भी साथ आया।

चाय-समोसे पर सबने स्वच्छता पर गंभीर चर्चा की

और मुख्य नेता ने  दर्शकों को अपने भाषण से ललकारा,
फिर जो जहाँ से आया था अपने अपने रास्ते सिधारा ।

थोड़ी ही देर में वहाँ पहले जैसा सन्नाटा रह गया,
और मैं खड़ा खड़ा देखता रहा गया,

उस कूड़े के ढेर को जो आज से पहले वहाँ नहीं था।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “स्वच्छता अभियान

  • विजय कुमार सिंघल

    करारा व्यंग्य !

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