यह सब समझ रहे हैं की दिल्ली की हवा क्यों आजकल ढीली है, पर लगता है की संबंधित सरकारें या तो समझ नहीं रही हैं या ना समझने का नाटक कर रही हैं। कल तक जो जाड़ों में बिस्तर को गर्म करने के काम आती थी, डंगर का चारा होती थी वही पुवाल तीन तीन […]
Author: मनोज पाण्डेय 'होश'
ग़ज़ल
वो मांगता है पता आज हमसे साहिल का, कभी रहा है सबब, जो हमारी मुश्किल का। उठी हैं फिर से घटाएँ, घुमड़ रहा सावन, ये किसकी याद में मौसम बदल गया दिल का। न रौशनी, न कोई रंग है न आराई, वो घर यही है, मोहब्बत में […]
गीत
उद्गार मेरे, सुन प्राण प्रिये इक गीत बना कर लाया हूँ मैं तेरे लिये, सुन प्राण प्रिये। ख्वाबों में तुझको बुलाता हूँ सपनों में तुझको सजाता हूँ दिन रात जलाये रखता हूँ आँखों में तेरी चाहत के दिये •••••सुन प्राण प्रिये। कुछ खट्टी मीठी यादों को सीने से लगाये रखता हूँ और दिल में तुझसे […]
कर संगत
अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने बताया की हमारे देश के लोग कर भुगतान में सबसे पीछे हैं। यह बात शत प्रतिशत सही है। कर न देने के लिये हम क्या क्या जतन नहीं करते और इसमें सरकार की नीतियाँ भी हमें रोकने के बजाय बढ़ावा देती हैं। कर बचाने में हमें रास्ता […]
ग़ज़ल
नये साल में एक ताज़ातरीन ग़ज़ल कुछ काम ज़रूरी जो हमारे निकल आए, रिश्तों में कई पेंच तुम्हारे निकल आए। हमने तो वही बात कही है जो बज़ा थी, क्यूँ आपकी आँखों से शरारे निकल आए। जिस कारे – जफ़ाई से परीशान रहे हम, उस ग़म के यहाँ और भी मारे निकल आए। हैं बाद […]
ग़ज़ल
जब की खुद हमने बढाई है मुसीबत अपनी, आओ खुद से ही करी जाए शिकायत अपनी। वक्त बदला भी तो किस काम का अपने यारों, बद से बदतर ही हुई जाए है हालत अपनी। लाख फिर मंज़रे – हाज़िर की गिरी सूरत हो, देखना वो ही हमें है जो है चाहत अपनी। बस कि […]
काला धन् + धा
भला हो हमारी मौजूदा सरकार का की वो हमें आये दिन ऐसे मुद्दे देती रहती है जिस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस आवश्यक है, जैसे असहिष्णुता, राष्ट्रीयता, देशद्रोह बनाम देशभक्ति, सर्जिकल स्ट्राइक, विदेशी संबंध, राजनैतिक चरित्र, सब्सिडी का हक, शिक्षण संस्थान, कला से जुड़े लोगों की सुचिता, शहादत, मान-अपमान आदि आदि। इस बार काला धन […]
रेल तंत्र का षड्यंत्र
लखनऊ मेल के AC II टायर में 12 दिसंबर ’16 के लिये 43 बर्थ दिल्ली के लिये उपलब्ध हैं। आप सीनियर सिटीज़न श्रेणी में दो बर्थ बुक करने का उपक्रम करते हैं और चाहते हैं कि कम से कम एक लोवर बर्थ मिले। सिस्टम आपसे पूछता है कि यदि अलग अलग कोच हो जाय तो […]
ग़ज़ल
वो सब्ज़बाग़ दिखा कर के बाग़ लूट गया, ये रौशनी के बहाने चिराग़ लूट गया। किसी के जिस्म को लूटा दरिंदगी ने यहाँ, किसी के रूप को वहशत का दाग़ लूट गया। कई तरीकों से ज़ारी है लूटपाट यहाँ, कोई ज़मीर […]
ग़ज़ल
एक बहरे-तवील में पेशकश: कभी राहे-ख़म को मना लिया कभी हब्से-दम को मना लिया कभी इस कदम को मना लिया कभी उस कदम को मना लिया यूँ ग़ुज़र गयी मेरी ज़िन्दगी लिये साथ मेरे नसीब को कभी हमकदम को मना लिया कभी अपने दम को मना लिया हुआ यूँ भी तेरे फ़िराक में जला दिल […]