जीने की लत
जीने की लत
जो हमने है पाली
आज वही मारे जाती है॥
जीने की लत……….॥
जीता हूँ दिल पर
बोझ लिए अब
रात अंधेरी
है काटे हरदम।
जब बोझिल
कुछ कदम बढाऊँ
राह मुझे छोड़े जाती है॥
जीने की लत……….॥
इक पल
मुझको चैन मिले जो
नज़र कुछ आती हैं।
कुछ चुप रहतीं हैं
कुछ कहतीं
फ़िर हाथ पकड़कर
जाने कहाँ
ले जाती हैं॥
जीने की लत……….॥
अच्छी कविता !
हार्दिक धन्यवाद।