कविता

जीने की लत

जीने की लत

जो हमने है पाली

आज वही मारे जाती है॥

जीने की लत……….॥

जीता हूँ दिल पर

बोझ लिए अब

रात अंधेरी

है काटे हरदम।

जब बोझिल

कुछ कदम बढाऊँ

राह मुझे छोड़े जाती है॥

जीने की लत……….॥

इक पल

मुझको चैन मिले जो

सिलवटें मगर

नज़र कुछ आती हैं।

कुछ चुप रहतीं हैं

कुछ कहतीं

फ़िर हाथ पकड़कर

जाने कहाँ

ले जाती हैं॥

जीने की लत……….॥

© राजीव उपाध्याय

राजीव उपाध्याय

नाम: राजीव उपाध्याय जन्म: 29 जून 1985 जन्म स्थान: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश पिता: श्री प्रभुनाथ उपाध्याय माता: स्व. मैनावती देवी शिक्षा: एम बी ए, पी एच डी (अध्ययनरत) लेखन: साहित्य एवं अर्थशास्त्र संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in

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