मैं कविता बन जाऊँगी
कवि तुम बन जाना हमदम, मैं कविता बन जाऊँगी!!
सागर तुम बन जाना हमदम, मैं सरिता बन जाऊँगी!!
दीपक तुम बन जाना हमदम, मैं बाती बन जाऊँगी!!
स्पर्श जब करोगे तुम , मैं रोशन हो जाऊँगीं!!
पवन तुम बन जाना हमदम, मैं खुशबू बन जाऊँगीं!!
पाकर साथ, तुम्हारा हमदम, चँहु और बिखर मैं जाऊँगी!!
राग तुम बन जाना हमदम, मैं रागिनी बन जाऊँगी!!
मैं आशा उम्मीद हूँ सबकी, खुद को कैसे बचाऊँगीं!!
शब्द तुम्हारे बनकर हमदम, मैं अधरों पे बिखर जाऊँगीं!!
गढ़ लेना तुम खुद मैं मुझको मैं कविता बन जाऊँगी!!
ढ़लकर तुम्हारे सुरों में हमदम, मैं और निखर जाऊँगीं!!
नहीं रहेगा ड़र किसी का, मैं तुम में ही बस जाऊँगीं!!
कवि तुम बन जाना हमदम, मैं कविता बन जाऊँगी!!
…राधा श्रोत्रिय ”आशा”
बहुत बढिया कविता बन पड़ी है।
बहुत खूबसूरत कविता !