कविता

मैं कविता बन जाऊँगी

कवि तुम बन जाना हमदम, मैं कविता बन जाऊँगी!!

सागर तुम बन जाना हमदम, मैं सरिता बन जाऊँगी!!

दीपक तुम बन जाना हमदम, मैं बाती बन जाऊँगी!!

स्पर्श जब करोगे तुम , मैं रोशन हो जाऊँगीं!!

पवन तुम बन जाना हमदम, मैं खुशबू बन जाऊँगीं!!

पाकर साथ, तुम्हारा हमदम, चँहु और बिखर मैं जाऊँगी!!

राग तुम बन जाना हमदम, मैं रागिनी बन जाऊँगी!!

मैं आशा उम्मीद हूँ सबकी, खुद को कैसे बचाऊँगीं!!

शब्द तुम्हारे बनकर हमदम, मैं अधरों पे बिखर जाऊँगीं!!

गढ़ लेना तुम खुद मैं मुझको मैं कविता बन जाऊँगी!!

ढ़लकर तुम्हारे सुरों में हमदम, मैं और निखर जाऊँगीं!!

नहीं रहेगा ड़र किसी का, मैं तुम में ही बस जाऊँगीं!!

कवि तुम बन जाना हमदम, मैं कविता बन जाऊँगी!!

राधा श्रोत्रिय ”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

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