.ये खेल है कब से जारी, बिछड़े सभी बारी बारी
आम आदमी पार्टी पूरी वैज्ञानिक पद्धति पर चल रही है। इसमें डार्विनवाद की छाया दिखाई देती है। लेमार्कवाद की ग्रोथ झलकती है। न्यूटन की गति के नियम चल रहे है। अंततः रॉकेट की तरह व्यवहार कर रही है। रॉकेट साइंस सबसे बड़ी साइंस है। लोग मजाक में भी कहते है की इसमें कोण सी रॉकेट साइंस है । भारत का इसरो अमेरिका के नासा को कड़ी टक्कर दे रहा है। रॉकेट छोड़ने में हम किसी से कम नहीं है। छोड़ने के साथ साथ हम फेकने में भी पीछे नहीं है। हम किसी चीज में भी पीछे नहीं है। अगर पीछे है भी तो किसी के पीछे पड़े हों तभी किसी का पीछा करते हुये दिखाई देते है। हमारा मन किसी वफादार कुत्ते की तरह किसी के पीछे पड़ा रहता है। हमारे एक दोस्त है। जब वो पैदा हुए थे तो ज्योतिषी जी ने उनका नाम चिंताहरण दास रखा था लेकिन सबकी चिंता करते करते वो चिंता में घुल गए तो उनकी धरमपत्नी उनको प्यार से चिंटू कहकर पुकारने लगी। चिंटू जी को अपने पड़ोस की बड़ी चिंता रहती है। उनका मन खोजी कुत्ते की तरह सबका पीछा करता रहता है। आप को अगर ताजा समाचार चाहिए तो बस पल भर उनसे बतिया लीजिये। पड़ोस से लेकर पेरिस तक के सारे समाचार बुलेट की तरह एक ही बुलेटिन में सुना देंगे।
आज देश चिंता हरण और चिंता प्रसाद जैसे प्यारे चिंटूओं से भरा पड़ा है जो सरकार से उतने ही असंतुष्ट है जितने की साली से। सरकार कभी उनकी अपेक्षाओ पर खरी नहीं उतरी। उनके सपने साली ने भी तोड़े और सरकार ने भी। टूटते बिखरते सपनों ने चिंटू के व्यक्तित्व में एक खास सॉफ्टवेयर डाल दिया। चिंटू एक आम आदमी होते हुए भी एक खास प्रकार के व्यक्तित्व का धनी है।
जंतर मंतर पर रॉकेट लांच करने की योजना बनी। रामलीला मैदान पर रॉकेट पैड बनाया गया। आन्दोलन के पैड पर आम आदमी पार्टी नामक रॉकेट तैयार किया गया। इसके गठन की आधिकारिक घोषणा २६ नवम्बर २०१२ को भारतीय संविधान अधिनियम की ६३ वीं वर्षगाँठ के अवसर पर जंतर मंतर, दिल्ली में की गयी थी। अब बारी थी रॉकेटनुमा आम आदमी पार्टी को लांच करने की। लांच करते समय विभिन्न वर्गों के वैज्ञानिक बुलाये गए। बड़े बड़े तीस मारखा बुलाये गए। मंत्रोचार करने वाले ब्राह्मण भी बुलाये। हिसाब किताब रखने वाले बनिए और मुनीम भी बुलाये। चारण परंपरा के भाट कवि से भी कविता पाठ कराये गए । वो सारे विधान अपनाये गए जो अपनाये जा सकते थे। वो सारे करम काण्ड किये जो करणीय थे। योजना पक्की थी। मौसम विज्ञानी,कवि, पर्यवेक्षक, इनफोर्मेसन टेक्नोलोजी एक्सपर्ट, गायक , वादक , हुरियारे, सब ऐसे इकठ्ठे होकर पेड़ पर चढ़े जैसे अचानक बाढ़ आ जाती है।
कोई गुलेलबाज गुलेल हाथ में लेकर आया। कोई स्टिंगबाज जेब में केमरा लगाकर लाया। जितने असंतुष्ट, कुंठित,सेडिसटिक,फड़फडाती हुई आत्माएं थी वो सब एक नाव में बैठ गयी। नाव डूबने लगी तो एक एक करके सबको प्रशांत महासागर में फेंक दिया गया। जब तक बाहर नहीं फेंका गया था तब तक किसी भी इल्मी को इल्म नहीं था की एक दिन भाभी से सारे देवर होली खेल लेंगे। इल्म के बदले किसी गुलेल बाज को आशीष मिल जायेगा। किसी कुमार पर भी विश्वास कर लिया गया। कोई योगी इंद्र बनने के सपने देखने लगा। किसी भूषण के आभूषण छीन लिए गए। कार्यकर्ताओं का चीरहरण देखते हुए शांति पितामह भीष्म पितामह की तरह चुप नहीं बैठे। करोड़ी दानदाता शांति ने अशांति फैला दी। संजय धृतराष्ट्र को महाभारत का पूरा हाल सुना रहे है। राय साहब की राय के भी बड़े मायने है। कुमार अपना विश्वास मत बनाये हुए है। प्रोफेसर को भी आनंद नहीं आ रहा है।
पार्टी के विदेशी दान की जाँच कराने की बात कही जा रही है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि शराब की बोतलें किसकी थी ? चुनावों में सूरा और सुंदरी का खेल आम बात है पर यह आम आदमी को समझ नहीं आ रहा है। पिछली सरकार में कानून मंत्री सोमनाथ भारती खिड़की एक्सटेंसन में खिड़की से क्यों झांक रहे थे इस पर से भी पर्दा नहीं उठा है। आप में इतने परदे है की एक पर्दा उठता है तो दूसरा गिर जाती है। जैसे आप कोई पार्टी न होकर कोई प्याज हो। एक छिलके के बाद अगला छिलका आ जाता है। कुछ लोग तो इन प्याज के छिलको पर ही अपना धरम भ्रस्ट कर बैठे है। प्याज के छिलकों पर इमां बेचने वाले चिंताप्रसादों उर्फ़ चिंटुओं का झुण्ड आपस में ही लड़ रहा है। केरल के हाथियों की तरह मदमस्त होकर गुजरात के शेरों पर चिंघाड़ रहा है।
गुलेलबाजों,स्टिंगबाजों और चिंटुओं की पार्टी रॉकेट का व्यवहार कर रही है। रॉकेट ने उड़ते हुए रामलीला का पैड छोड़ दिया था। अन्ना जैसे प्रारम्भिक मास्टर वहीं छूट गए थे। अब एक एक करके सारे चैम्बर खुल खुल कर छूटते जा रहे है। इंद्र का योग काम नहीं आ रहा है। प्रशांत के धैर्य का हाथ छूट रहा है। रॉकेट उन्हें न छोड़े तो क्या करे ? वजन हल्का करना है। लास्ट में रॉकेट की चोंच ही अपनी कक्षा में जाकर स्थापित होगी। यही रॉकेट छोड़ने का लक्ष्य होता है। जब आम आदमी पार्टी नामक रॉकेट का आखिरी पीस अकेला बच जाये तो समझ लेना कि अभियान सफल हो गया।
काग़ज़ के फूल फ़िल्म का गण याद आता है। उड़ जा उड़ जा प्यासे भँवरे, रस ना मिलेगा ख़ारों में। कागज़ के फूल जहाँ खिलते हैं, बैठ ना उन गुलज़ारो में। नादान तमन्ना रेती में, उम्मीद की कश्ती खेती है। इक हाथ से देती है दुनिया, सौ हाथों से लेती है। ये खेल है कब से जारी। बिछड़े सभी, बिछड़े सभी बारी बारी।
डॉ रजनीश त्यागी
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हा हा हा….. करारा व्यंग्य !