लघुकथा

देवी पूजा

आंख खुलते ही हर रोज की तरह आज भी रसोईघर से मम्मी  की आवाज के साथ -साथ बरतनों की उठापटक की आवाज सुनाई दी,पर हैरानी की बात आज कामवाली बाई की आवाज नहीं आ रही थी। जाकर देखा तो माँ नौकरानी  की बेटी को डांट रही थी जो रोते-सुबकते रात के झूठे पडे बरतनों  को रगड -रगड कर मांजते हुए अपनी मैली-कुचैली आस्तीन से आंसुओं को भी पौंछ रही थी ताकि  कोई देख न ले।उसकी मासूमियत देखते  हुए मैनें  मम्मी से कहा,”मम्मी  क्यों  डांट रही हो उसे?”

माँ तेज स्वर में  बोली, “जानती हो, आज से नवरात्र पूजा शुरू हो रही है, मैने  कल ही इसकी माँ को जल्दी आने को कह दिया था और उस महारानी ने इसे भेज दिया, ये कहती है कि माँ को बुखार है । सारा काम पडा है, मुझे मन्दिर की सफाई भी करनी है , मां का सिंगार करने देवी मन्दिर भी जाना  है ? ”

“माँ! देखो ना , वो कितनी छोटी-सी है, फिर भी कितना काम कर रही है?”

“तुम नहीं जानती बेबी, ये लोग छोटे तो होते ही हैं साथ ही कामचोर भी होते हैं । जिस दिन भी घर में काम ज्यादा हो तो इनके बहाने शुरू हो जाते हैं।  …. ऐ लडकी, जल्दी-जल्दी हाथ चला क्या मेंहदी लगी है? तुम इस पर निगरानी रखना, मै मन्दिर जा रही हूं देवी पूजा करने ।””

“मम्मी…..! घर में आई देवी का तो आप अपमान कर रही  हैं और मन्दिर में  पत्थर मूर्ति की पूजा करने जा रही हैं?”

इतना सुनते  ही मम्मी ने मेरे गाल पर जोर से तमाचा जड दिया, जिसकी गूंज सारे घर में  गूंजती रही। यह थी मम्मी की “देवी पूजा” !

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. surekhasharma56@gmail.com

3 thoughts on “देवी पूजा

  • बहन जी , लघु कथा अंधविश्वास पर एक गेहरी चोट है , बस यही अन्ध्विशास ने हमारा बेडा गरक कर रखा है . यह आप के घर की कहानी नहीं हो सकती किओंकि आप को संस्कार अछे मिले हैं , आप ने तो सिर्फ कहानी ज़रिए अंधविश्वास पर चोट मारी है , बहुत अच्छी लगी , आगे भी इंतज़ार रहेगा .

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपने अपनी लघु कथा में अज्ञान व अंधविस्वास पर तीखी चोट की है। बधाई। क्या आपने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा है? यदि नहीं तो कृपया एक बार अवश्य पढ़े। विनम्र प्रार्थना।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक लघु कथा. यही है पूजा की वास्तविकता.

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