संग तुम्हारे
पाकर साथ तुम्हारा, हम बहकने लगे हैं,
कि बनके खुशबू हवाओ में, महकने लगे हैं !
प्यार हद से हमारा अब, गुजरने लगा है,
साँसों कि हर लय पर, नाम तुम्हारा बुना है!
चाँदनी ने रुखसारों से, रंग चुरा लिया है ,
संग तुम्हारे देख, चाँद भी जलने लगा है !
हवाओं ने पेडों से, कानों में कुछ कहा है ,
प्यार की खुशबू से, रोशन ये जहाँँ हैं !
खुश होकर अंबर ने, “आशा” प्रेम -दीप, जलाये हैं!
प्यार से हमारे देखो, धरती अंबर भी , मुस्कुराये हैं !
… राधा श्रोत्रिय “आशा”
बढ़िया कविता !