कविता

संग तुम्हारे

पाकर साथ तुम्हारा, हम बहकने लगे हैं,

कि बनके खुशबू हवाओ में, महकने लगे हैं !

प्यार हद से हमारा अब, गुजरने लगा है,

साँसों कि हर लय पर, नाम तुम्हारा बुना है!

चाँदनी ने रुखसारों से, रंग चुरा लिया है ,

संग तुम्हारे देख, चाँद भी जलने लगा है !

हवाओं ने पेडों से, कानों में कुछ कहा है ,

प्यार की खुशबू से, रोशन ये जहाँँ हैं !

खुश होकर अंबर ने, “आशा” प्रेम -दीप, जलाये हैं!

प्यार से हमारे देखो, धरती अंबर भी , मुस्कुराये हैं !

… राधा श्रोत्रिय “आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “संग तुम्हारे

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

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