गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दिल मेँ फूल बनकर खिलती रही कुछ कुछ बातें
दिल में ही शूल बनकर चुभती रही कुछ कुछ बातें

जज़्बातों पे यकीं करना भी अब हुआ है गुनाह
दिल में उतर कर छल करती रही कुछ कुछ बातें

अचानक राख पर पैर पड़ा जब तो पता ये चला
बरसों तक आग बन सुलगती रही कुछ कुछ बातें

रख देती हैं दिल को मोड़ कर, ज़िंदगी संवार कर
यूं ही दिल को जो भली लगती रही कुछ कुछ बातें

रोज़ ही कई कई अनुभवो से है नाता रहता “राज”
पर गीतों और ग़ज़लो में ढ़लती रही कुछ कुछ बातें

राज रंजन 

राज रंजन

भारतीय स्टेट बैंक में सेवारत

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • बहुत अच्छी ग़ज़ल , एक एक लफ्ज़ मोती लगा.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल !

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