गीत/नवगीत

राम-भजन : निर्गुन

छन्द:
बचपन  बीता  खेल-खेल में, मस्ती  में  तरुणाई
धन-दौलत,यश के पीछे; जीवन-भर दौड़ लगाई
देख  बुढ़ापा  थर-थर  काँपा, भूल  गई  ठकुराई
कभी राम का नाम लिया ना,बिरथा जनम गँवाई
०००००००

उजली चादर  मैली  कर ली,
कैसे  प्रभु-घर  जायेगा ।
राम-नाम का सुमिरन कर ले,
भव-सागर  तर  जायेगा ।।

कभी न की संतों की सेवा,
कभी न दुखियों के दुख  बांटे ।
अपने हित के लिए बिछाये,
नित  औरों  के  सम्मुख  कांटे ।
अब तो मूरख जाग,नहीं तो,
जीतेजी  मर  जायेगा ।।
राम-नाम का सुमिरन…..

झूठी है ये जग की माया,
झूठी  तेरी  सुन्दर  काया ।
झूठे  हैं  सब  रिश्ते-नाते,
तू इसमें  क्योंकर भरमाया ।
महल-अंटारी,माल-ख़ज़ाना,
यहीं पे  सब  धर  जायेगा ।।
राम-नाम का सुमिरन…..

तेरी ये कंचन सी काया,
पल-पल,छिन-छिन छीजे रे ।
राम-नाम का ओढ़ दुशाला,
क्यों  दुविधा  में  भींजे  रे ।
राम-कृपा से ‘भान’ तुम्हारा,
हर  संकट  टर  जायेगा ।।
राम-नाम का सुमिरन…..

उजली चादर मैली करली,
कैसे प्रभु-घर जायेगा
राम-नाम का सुमिरन कर ले,
भव-सागर तर जायेगा ।।

००००००००

              उदयभान पाण्डेय ‘भान’

उदय भान पाण्डेय

मुख्य अभियंता (से.नि.) उप्र पावर का० मूल निवासी: जनपद-आज़मगढ़ ,उ०प्र० संप्रति: विरामखण्ड, गोमतीनगर में प्रवास शिक्षा: बी.एस.सी.(इंजि.),१९७०, बीएचयू अभिरुचि:संगीत, गीत-ग़ज़ल लेखन, अनेक साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव

One thought on “राम-भजन : निर्गुन

  • बहुत अच्छी लगी ,. रामनवमीं की वधाई हो.

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