उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 52)
47. स्त्रैण सुल्तान
देवगिरी में शाही खेमा लगा है। उस खेमे में सुल्तान मुबारक और वजीर खुशरव शाह मौजूद हैं। देवगिरी के राजा हरपाल देव की जीवित खाल खिंचवाने के बाद शाही खेमे में जश्न का माहौल है। इस वक्त मुबारक ने अजीब पोशाक पहन रखी है। कमर के नीचे लहंगा और उसके सीने पर चोली बंधी है। सुल्तान स्त्री वेशभूषा में है।
खुशरवशाह अपने हाथ का मदिरा का गिलास एक तरफ रखते हुए बोला, ”मुबारक हो सुल्तान, आखिर देवगिरी की फतह मुकम्मल हुई।“
”हाँ प्रिय खुशरव, पर इस फतह का सेहरा तो तुम्हारे सिर ही है। काफिर हरपाल बड़ा सरकश था उसे काबू करके तुमने बड़ा काबिले तारीफ काम किया है।“
”यह तो सुल्तान का बड़ा दिल है जो वह हम पर इतनी नवाजिशें करते हैं।“
कुछ देर रूककर खुशरव फिर बोला, “शायद सुल्तान को देवलदेवी की बहुत याद सता रही है। शायद यही वजह है सुल्तान ने ये बेगमों वाले वस्त्र धारण किए हैं।“
”ओह नाजुक देवलदेवी!“ सुल्तान मुबारक अपनी पेशानी पर अपना दायां हाथ मलते हुए बोला, ”उनकी बहुत याद आती है पर वह अभी खिज्र खाँ के साथ में है। पर खुशरव यह कपड़े पहनने की वजह कुछ और है।“
”क्या सुल्तान?“ खुशरव शाह वापिस मदिरा का गिलास उठाकर उसमें से कुछ मदिरा पीते हुए बोला।
”खुशरव, कभी-कभी हमें लगता है हम स्त्री हैं। दिल में स्त्री की तरह बनाव-श्रृंगार करने की इच्छा होती है। तब हम एक साधारण स्त्री की तरह किसी पुरुष को ढूँढ़ते हैं।“
खुशरव मदिरा का एक गिलास सुल्तान को देते हुए बोला, ”तब तो सुल्तान को दिल्ली लौट जाना चाहिए। वहाँ पर आपकी दोनों इच्छाएँ आसानी से पूरी होती रहेंगी। बेगम देवलदेवी के पास रहने की और खुद के लिए पुरुष ढूँढ़ने की।“
”दुरुस्त कहते हो प्रिय खुशरव, पर दक्खन की आगे की जंग का क्या होगा?“ मुबारक हाथ नचाते हुए बोला।
”मुझ पर यकीन रखे सुल्तान, माबर और दरसमुद्र की जंग मैं लडूँगा। सुल्तान बेफिक्र दिल्ली के लिए रवाना हों, पर शाही हरम में मौजूद अपने दुश्मनों को अब आप मौत की नींद सुला देना। क्योंकि दुश्मन आपको अकेला देखकर साजिश रच सकते हैं।“
”शायद वजीर का मतलब खिज्र खाँ, शादी खाँ और अबू बक्र से है।“
”सुल्ताने आला ने ठीक समझा पर इनके साथ अब जलालुद्दीन फिरोज के भाई यग्रस खाँ के परिवार का जीवित रहना भी सल्तनत के लिए ठीक नहीं है। और फिर खिज्र खाँ के कत्ल के साथ ही, देवलदेवी भी…।“ खुशरव ने बात अधूरी छोड़ दी।
मुबारक शाह तनिक सोचकर बोला, ”बिलकुल ठीक, ऐसा ही होगा।“
खुशरव, मुबारक को वापस मदिरा का गिलास देते हुए बोला, ”सुल्तान मुआफ करें मैंने आपसे पूछे बिना अपने भाई हिमासुद्दीन को गुजरात का सूबेदार नियुक्त कर दिया है।“
मुबारक हँसकर बोला, ”सल्तनत के वजीर को ऐसे छोटे फैसले खुद लेने चाहिए इनमें सुल्तान को घसीटने की कोई जरूरत नहीं।“
”जी शुक्रिया सुल्ताने आला“, खुशरव झुककर बोला और फिर वह यह कहकर कि ‘सुल्तान थके होंगे, विश्राम करें’ खेमे से बाहर आ गया और सुल्तान स्त्री वेश में खेमे के अंदर दौड़ने लगा।
धर्म देव ने जो योजना बनायी थी, अब वह अंतिम चरण में है. बहुत रोचक इतिहास है.