उड़ने लगे रंग
फागुन की झोली से
उड़ने लगे रंग
मौसम के भाल पर
इन्द्रधनुष चमके
गलियों और चौबारों के
मुख भी दमके
चूड़ी कहे साजन से
मै भी चलूँ संग
पानी में घुलने लगे
टेसू के फूल
नटखट उड़ाते चलें
पांवो से घूल
लोटे में घोल रहे
बाबा आज भंग
सज गई रसोई
आज पकवान चहके
हर घर मुस्काते चूल्हे
हौले से दहके
गोपी कहे कान्हा से
न करो मोहे तंग
रचना श्रीवास्तव
कैलीफोर्निया, अमेरिका
कविता बहुत अच्छी लगी .