कविता

लिखती हूँ कलम से

 

स्याही आंसूओं की होती है
आज तेरे हर ज़ुल्म पर
मेरी आंख रोती है
कभी सोचा न था
हमसफर दगा करेगा
मुझे छोड़ विरानो में
खुद किसी और को पसंद करेगा
तुम्हारी इसी शिक्षा को अपना लिया
दामाद ने
बेटी को घर छोड़ गया
खुद दूसरी ले आया
पूछने पर बोला
यही रीत हैं इस घर की
उसे ही निभा रहा हूँ
तुम अपनी बेटी अपने पास रखो
मैं ससुर के साथ डिस्को जा रहा हूँ
अब हम माँ बेटी दोनो रोती हैं
बंद कमरों में बस
सिसकियों की आवाज़ होती है
बेटा भी चल पड़ा
तुम्हारे रास्ते पर
अब बहू भी रोती है
बस सिसकियों की आवाज़
कुछ ज्यादा होती है
मेरा नहीं तो इन बच्चियों का सोचो
बंद कर दो ये तमाशा
वरना मैं अगर बोल पड़ी
कहीं मुंह न दिखा पाओगे
बेटे और दामाद के साथ
कहीं जेल में पड़े नज़र आओगे
नहीं सहा जाता मुझसे
औरतों पर ये जुल्म
रोक लो खुद को वरना
अब हम औरतो को नहीं रोक पाओगे
रमा शर्मा
कोबे, जापान

रमा शर्मा

लेखिका, अध्यापिका, कुकिंग टीचर, तीन कविता संग्रह और एक सांझा लघू कथा संग्रह आ चुके है तीन कविता संग्रहो की संपादिका तीन पत्रिकाओ की प्रवासी संपादिका कविता, लेख , कहानी छपते रहते हैं सह संपादक 'जय विजय'

One thought on “लिखती हूँ कलम से

  • वाह वाह , बहुत खूब .

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