कविता

मंज़िल की राह

खूबसूरत इस दुनिया में
यह जिंदगी एक वरदान है,
सम्हल कर चलो जीवन सफर
हर मोड़ पर इम्तिहान है।

एकबार बढ़े जो आगे कदम
पीछे हटने की बात न हो,
बढ़ने की चाहत ऐसी हो
कि थकन का एहसास न हो।

मिलेंगे तुम्हें क़ई काँटें
मंजिल की इन राहों में,
आशा,धैर्य,विश्वास रखना
साहिल होगा इन्हीं तूफ़ानों में।

हार भी हासिल हो कभी
टुकड़े मत करना दिल के,
जरुर बनाये होंगे रब ने
कुछ और राह मंज़िल के।

माँ के गर्भ से ही कोई
होता नहीं विद्वान,
यहीं जन्मता यहीं बढ़ता
वो यहीं बनता महान।

महत्वाकांक्षी अपने दिल से
कभी न हारा करते हैं,
पंखों से नहीं वो तो
हौंसलों से उड़ाने भरते हैं।

नामुमकिन नहीं है कुछ भी
ये रखना तुम विश्वास,
मंजिल तुम्हें जरुर मिलेगी
करते रहना प्रयास।

मंजिल पर चढ़कर देखोगे
नभ भी होगा तुमसे नीचे,
लोग चलेंगे तेरे कदमों पर
दुनिया होगी तुम्हारे पीछे।

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

5 thoughts on “मंज़िल की राह

  • दीपिका कुमारी दीप्ति

    बहुत-बहुत धन्यवाद सर !

  • मंजिल पर चढ़कर देखोगे
    नभ भी होगा तुमसे नीचे
    लोग चलेंगे तेरे कदमों पर
    दुनिया होगी तुम्हारे पीछे
    ……..वाह क्या बात है बहुत सुंदर दीप्ति जी।

    • दीपिका कुमारी दीप्ति

      बहुत बहुत धन्यवाद, महोदय !

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

    • दीपिका कुमारी दीप्ति

      हार्दिक धन्यवाद.

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