हॉट सीन
कल शाम टहलते हुए
अचानक कान में,
कुछ शब्द पड़े
“क्या हॉट सीन है यार “,
तुरंत मुड़के देखा
कुछ आवारा लड़के,
पोस्टर पर छपी
अधनंगी लड़की को देख
चुहलबाज़ी कर रहे थे,
उनके चेहरे के भाव
उनके इशारों से मेल खा रहे थे,
एक अजीब सी वितृष्णा ने
मन को घेर लिया,
विचारों के उपामोह में
फंसी मैं बेसबब चलती गयी,
अचानक मुझे भी
एक हॉट सीन याद आने लगा,
जो मैंने जेठ की तपती
दुपहरी में देखा था,
आसमान से आग
शोले जैसी बरस रही थी,
सड़क किनारे एक जवान औरत
हथौड़े की चोट से ईंट तोड़ रही थी,
उस धमक में था एक गुस्सा
बेबसी और लाचारी,
पसीने से भीगा उसका ब्लाउज
कंधे से गिरता उसका पल्लू,
जिसे संभालने का वो
अनथक प्रयास कर रही थी,
चुचुहाते पसीने से नहाया
उसका जिस्म तपते लोहे सा
चमक रहा था,
पास ही बैठी दूसरी औरत
आँचल की छाँव किये,
अपने दो साल के बच्चे को
सूखी छाती से दूध पिला रही थी,
बच्चे के हाथों से उघड़ती
उसकी छाती,
पास ही बैठे ठेकेदार की
गिद्ध निगाह से बच नहीं रही थी,
अपनी पिपासा को बेशर्मो की तरह
खींसे निपोरता भूखे भेड़िये की तरह
सहला रहा था,
शायद मन ही मन कह रहा हो
“क्या हॉट सीन है यार “!!!!!!!!
पेट की आग बुझाने को
उस गरम दोपहर में
भट्टी सी तपती औरत,
या पैसे की प्यास बुझाने
को जिस्म नुमाइश करती
पोस्टर पर चिपकी औरत,
दोनों ही सूरतों में
“हॉट सीन” बन जाती हैं
देखने वालों के लिए।
— प्रीति दक्ष
गरीब माताओं की बेबसी और बिगड़ैल विकृत मानसिकता पर चोट करती यह कविता बहुत प्रशंसनीय है। हार्दिक धन्यवाद।
behad shukriya man mohan ji.. aabahar kavita pasand karne ke liye..
So true
shukriya madan mohan ji
वाह बहुत खुब।
bahot dhanywaad aapka ..
dhaynywaad ramesh kumar ji
बहुत मार्मिक कविता !
shukriya Vijay ji..
shukriya vijay ji