सुनो ना…. बुरा वक़्त जैसे ….. फ़टे जूते से निकली कील पैरों में चुभती है, जैसे …. हर मोड़ पर खड़े कर्ज़दाता से बचने की नाकाम सी कोशिश, जैसे …. आधी रात को फ़ोन की घंटी बजने पर बुरी ख़बर की दस्तक, जैसे खाली जेब में मुह चिढ़ाती ज़रूरी चीज़ों की लंबी लिस्ट, सुनो ना […]
Author: प्रीति दक्ष
******* संत विवेकानन्द ********
स्वामी विवेकानंदजी की जन्मवर्षगाँठ के उपलक्ष में कविता ******* संत विवेकानन्द******** जन जन के हृदय में फूंका स्वतंत्रता का शंखनाद कलकत्ता की धरती पर जन्मे संत ने किया कमाल, उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल न हो जाए प्राप्त, सिखा, कराया आत्म गौरव का भान, सत्कर्मों के पुण्य फलों से माँ […]
***************झील***************
झील ऊपर से दिखती कितनी शांत पर क्या वाकई है वो इतनी शांत, कितने अक्स कितनी परछाईयां कितनी ज़िन्दगी कितनी सच्चाइयाँ, छुपाये अपने सीने में मौन सोच रही है अपना है कौन ? रोज़ बनता बिगड़ते बिम्ब प्रतिबिम्ब उठती गिरती रौशनी की परछाईयां, हवा के बहने पर सतह पर बहती लहरों का बनना बिगडना पास […]
मंदिर वाली माताजी
मेरी कामवाली ने आ कर बताया कि ” दीदी आपकी मंदिर वाली माता जी मर गयीं। ” परसों ही तो उन्हें देखा था काफी बीमार लग रही थीं। उनका पोता उन्हें डॉक्टर पर ले जा रहा था एक बार को मन किया कि गाड़ी रोक कर माता जी से बात करूँ पर पोता साथ था […]
ग़ज़ल
अपने उजड़े हुए दयार की कहानी हूँ मैं, चीर कर रख दे दिल को उस ग़म की निशानी हूँ मैं। आरज़ू बन कर जो कभी दिल में निहाँ रहता था ख़िज़ाँ ने लूट ली जो बहार उसी की दास्ताँ-ऐ तबाही हूँ मैं। नज़र के सामने कौंधी एक बिजली की लकीर हूँ मैं, ख़ुदारा कोई बता […]
********* औरत ************
औरत है खानाबदोश ………… अपने सपनो को वक़्त के पहिये पर लादे, पिता के घर से बेघर पति के घर पड़ाव डालती, निरंतर घूमती है बेटी पत्नी माँ बन, काफिले जोड़ती रिश्तों के फिर भी अकेली, हिम्मत हारने का अधिकार नहीं क्योंकि उसका दिल धड़कता है औरों के लिए, अगर वह रूक जाए तो रुक […]
फुर्सत
मैं कुछ पल फुर्सत के चाहती हूँ हर बन्धन से रिहाई चाहती हूँ, कुछ फुर्सत कलैंडर से न डराए वो आने वाले दिन की परेशानियों से, कुछ फुर्सत घड़ी की टिक टिक से जो भागती है तेज़ मुझसे तेज़, कुछ फुर्सत उस अपार अनंत ट्रैफिक से जो चलता तो मेरे साथ है पर हर कोई […]
अठन्नी
चलो आज फिर से निकलें बचपन की गलियों में हाथ में ले अठन्नी खुशियों की, जिसमे मिलते थे दस टॉफी संतरे वाली, चुस्की मलाई वाली कुल्फी बड़ी वाली, राम लड्डू खस्ता वाले बूढी के बाल गुलाबी से, कैंडी झंडे वाली पेंसिल रबर फूलों वाली, अम्बरक खट्टे वाले छल्ली उबली वाली, इमली लाल वाली जिसे खाके […]
संवाद
माँ ओ माँ, मैं बोल रही हूँ तेरे गर्भ में रोपित एक बीज, जिसे उसका माली ही मिटाना चाहता है, क्या करुँगी पैदा हो माँ ? मम आत्मजा, तू बीज चाहे पिता का हो पर तेरी धरा मैं हूँ, अपने रक्त से सींचती मैं करुँगी तेरी रक्षा, मेरी माँ ने भी मुझे जन्म दिया तुझे […]
******निशाना *****
पल पल पालती है बंद पिंजरे में एक औरत अपनी महत्वाकाँक्षाओं की चिड़िया को, कभी धूप और खुले आसमान की हवा खाने को निकालती है उस चिड़िया को बाहर, फुदक कर चिड़िया ज्यूँ ही मुंडेर तक पहुचती है, कोई घाघ शिकारी बैठा होता है दम साध निशाना बांधे मारने उस चिड़िया को, जानता है वो […]