कविता

कल होगा फिर उजियारा (कुकुभ छंद)

 

कूद रहा हूँ , गिर न पडूँ मैं , मुझे पकड़ना पापाजी
ऊपर से मैं कूद रहा हूँ मुझे लपकना पापाजी |
डरने की कुछ बात नहीं है,इतना बल है बाहों में
राज दुलारा है तू मेरा, आ जा अभी पनाहों में ||

सूरज सा मन आज खिला है, देख होंसला ये तेरा
नाज मुझे है बेटा तुझपर, ताकतवर बेटा मेरा |
देख सुहाना मौसम है यह, रुत भी आई मस्तानी
अश्क छलकते है नयनों से, है ये खुशियों का पानी ||

मस्ती में तू झूम रहा है, लगता है सबको प्यारा
अम्मा का इकलौता बेटा, उसकी आँखों का तारा |
घिर घिर आते है अब बादल, होने को है अँधियारा
करों न अब यूँ और तमाशा, कल होगा फिर उजियारा | |

लक्ष्मण रामानुज लडीवाला, जयपुर

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)

One thought on “कल होगा फिर उजियारा (कुकुभ छंद)

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे छंद !

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