तुम उसे सुन लेती हो
मै चुप हो जाता हूँ
तुम सून हो जाती हो
मै गीत गाता हूँ
तुम
मीठी धुन हो जाती हो
मै इस जग की सुबह में –
उग आता सूर्य सा
तुम धूप बनकर
बिखर जाती हो
बहते समय को
समेट नही पाता हूँ
अपनी बाहों में
पर हर पल तुम –
आरम्भ बन जाती हो
पाकर दुःख कभी कभी
यह जीवन लगता निरर्थक
तब तुम
आत्मीय सुख बन जाती हो
मनोयोग से पढ़ रही
जो कविता मुझे निरंतर
तुम उसे सुन लेती हो
तुम बिन
मेरा अस्तित्व गौण हैं
तुम बिन……
लगता सारा जग मौन है
किशोर कुमार खोरेन्द्र
वाह वाह !
shukriya