कविता

नई सुबह

आज सुबह
जैसे ही पर्दा खुला
मेरे कमरे में सूरज की पहली किरन आई
यूं लगा की
जैसे किसी को अपने साथ ले आई
बुझा बुझा सा था दिल मेरा
कई दिनों से
उस काले अँधेरे को चीरते हुए
शायद उम्मीद का दिया लायी
बहुत बुरा लगता है
जब दिन का उजाला गायब हो जाय
और अचानक
काली रातो में हम खो जाएँ
लेकिन
हमे याद रखना है
की फिर नया सूरज उगेगा
और छा जायगा प्रकाश हमारे जीवन में
वो उजाला
व्ही देख पायेगा
जो रखता है होंसला उन् अंधेरो से लड़ने का
यह सुबह
यही नूतन सन्देश लायी

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- [email protected]

One thought on “नई सुबह

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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