जीने की तैयारी कर…!!
बेमतलब की यारी कर,
जीने की तैयारी कर,
क्यूं बैठा है मौत की राह…
फिर जीवन की पारी कर !
मैं तो पहले तेरा था,
और तू भी पहले मेरा था,
कैसे रूठा फिर मुझसे तू…
बातें मुझसे जारी कर !
समय कभी ना रुकता है,
पर्वत भी ना झुकता है,
दुनियादारी के उसूल है…
थोड़ी तू भी होशियारी कर !
ना लकीर है पंछी की,
ना लकीर अंबर की है,
फिर क्यों लकीर ये ‘प्रजापति’..
इस विशाल धरती की है,
भेद मिटा दें इस लकीर का….
ऐसे ना लाचारी कर !
पगले तू क्या सोच रहा?
भ्रष्टाचारी नोच रहा..!
मिटा भ्रष्टता का अँधियारा..
तू भी दुनियादारी कर !!
‘प्रजापति’ आह्वान करें,
ग़र तू थोड़ा दान करें,
मिटा गरीबी मानवता का,
केवल तू उत्थान करें,
एक अकेला बदले दुनिया….
काम कठिन और भारी कर !
बेमतलब की यारी कर…
जीने की तैयारी कर….
सुन्दर अभिव्यक्ति!
धन्यवाद भाईसाहब…!
वाह वाह ! बढ़िया गीत !!
बहुत आभार बड़े भाई…! आपका स्नेह…