सुबह सुबह…
देख रहा हूँ
अभी ये शहर सोया है
जागता है तो दौड़ता है
अभी सपनों में खोया है
रोशनियाँ जल रही हैं
चिराग जल रहे हैं
अभी तो पलकें बंद हैं
ख्वाब पल रहे हैं
इन रोशनी से भरी
गलियों के बीच अँधेरे ने
हमारे मनो को धोया है
जागता है तो दौड़ता है
अभी सपनों में खोया है
सुबह हो रही है
कोयल चहकती है
आसमान पर बादल है
हवा भी महकती है
पर फैलाए पंछी
घर से तो निकलते है
लेकिन शाम तक लौटेंगे
या नहीं इसपर विकलते हैं
क्यूंकि आसमानों में भी दहशत
का खेत हमने बोया है
जागता है तो दौड़ता है
अभी सपनों में खोया है
____सौरभ कुमार
वाह वाह !