आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 34)
अगले दिन (19 अक्टूबर को) मैं टैक्सी से दिल्ली गया, क्योंकि कुतुब एक्सप्रेस 2-3 घंटे लेट थी। 11 बजे पहुंचा तो सीधा जापानी दूतावास गया और वीसा ले आया। वहाँ से बस से एयर इण्डिया आफिस गया। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और क्रोध भी आया, जब कु. मसीह ने बताया कि पी.टी.ए. अभी तक नहीं आया है। उन्होंने अनुमान लगाया कि वह वाराणसी में हो सकता है, कानपुर में नहीं, तो मैंने कहा कि वाराणसी बात करिये। उन्होंने काल बुक करने और मुझसे इन्तजार करने को कहा। मैं ज्यादा इन्तजार करने को तैयार नहीं था, फिर भी सबसे पहले मैंने श्री हिरानो को टेलेक्स किया कि एयर इण्डिया अभी भी यही कह रहा है कि पी.टी.ए. नहीं आया। मैंने यह भी लिख दिया कि अगर आज टिकट नहीं मिली, तो मैं वापस चला जाऊँगा।
मैं उनके जबाब का इन्तजार करने लगा। परन्तु 4:30 बजे तक कोई जबाब नहीं आया। तब मैं कु. मसीह को धन्यवाद देकर तथा श्रीमती राठौर के लिए धन्यवाद सन्देश देकर चला आया। वे मुझसे और इन्तजार करने को कह रही थी, परन्तु मैं तैयार नहीं था। वहाँ से मैं साहिबाबाद गया। वहाँ मेरे बड़े भाई साहब की ससुराल है। उन्हीं का फोन नम्बर मैंने श्री हिरानो को दिया था। उसी रात जापान से वहाँ फोन आया कि विजय कुमार का पी.टी.ए. वाराणसी से दिल्ली भेजा जा रहा है और इस बार टिकट पक्की है।
खैर, दूसरे दिन 9 बजे हमने एअर इण्डिया को फोन मिलाया तो वे बोले कि टिकट पक्का है, आकर ले जाइये। मैं निश्चिन्त हुआ और भाई साहब के साथ टैक्सी में दिल्ली गया। वहाँ मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब किसी नये (अनाड़ी) क्लर्क ने बताया कि पी.टी.ए. अभी तक नहीं आया है। मैंने उनसे कहा कि अभी तुरन्त जाकर अपने सभी टेलेक्स देख लो। वे गये और काफी देर बाद पी.टी.ए. लेकर लौटे। तब मेरी जान में जान आयी। उन्होंने टिकट बनाने में जरूरत से ज्यादा समय लिया। 12:30 बज गये थे। उसी दिन फ्लाइट थी तथा मुझे विदेशी मुद्रा भी लेनी थी। उस दिन केवल अशोका होटल में विदेशी मुद्रा मिल सकती थी।
अतः हम तुरन्त वहाँ गये। वहाँ से 500 डालर लिये जिसमें करीब 1 घंटा लग गया। हमें साहिबाबाद भी जाना था, क्योंकि हमारा सारा सामान वहीं रखा था। दौड़ते-दौड़ते हम वहाँ 2.40 पर पहुँच पाये। जल्दी-जल्दी हमने खाना भी खाया और सामान ठीक करके तथा श्री हिरानो के लिए एक छोटी सी भेंट लेकर हम ठीक 3.15 पर चल दिये। इस बार हम आउटर रिंग रोड पर होकर चले, क्योंकि वहाँ ट्रेफिक कम था। लाल बत्ती की भी चिन्ता नहीं थी। ठीक 4.15 पर हम एअर पोर्ट टर्मीनल-2 पर पहुँच गये।
वहाँ जाकर पता चला कि हमारी उड़ान 2 घंटे लेट है। अब हमें इन्तजार करना था। मेरे साथ मेरे भाई साहब, भाभी जी, उनके भाई, मेरा भतीजा सनी (साहिल) और भतीजी शिल्पी भी गये थे। मैंने उनसे कहा कि उड़ान तक अगर आप इन्तजार करेंगे, तो लौटने में बहुत रात हो जायेगी। इसलिए आप चले जाइये। काफी कहने पर वे मान गये और ठीक 6 बजे उनसे विदा लेकर मैं हवाई अड्डे के अन्दर चला गया।
पहले मैं कभी देश से बाहर नहीं गया था, इसलिए हवाई अड्डे के अन्दर मुझे थोड़ी परेशानी हुई। सौभाग्य से एक सिख सज्जन ने मदद की। उनके कहने पर सबसे पहले मैंने 300 रु. का एअरपोर्ट टैक्स जमा किया। फिर सामान की जाँच करायी और एक सूटकेस सामान के साथ रखने के लिए दे दिया। दूसरे सूटकेस में मेरी जरूरत की सभी चीजें थी, वह मैंने अपने साथ रखा। इमीग्रेशन (प्रवास) विभाग की जाँच में काफी समय लग गया। मुझे तो केवल 1 मिनट लगा, परन्तु दूसरे जो लोग लाइन में मुझसे आगे खड़े थे, उन्होंने काफी समय लगाया। खैर, अब कस्टम से पाला पड़ा। उन्होंने भी साथ के सामान की जाँच की। उस समय 6.30 बजे थे।
मेरी फ्लाइट आठ बजे बतायी गयी थी, परन्तु वह और देरी से होने की संभावना थी। इसलिए मुझे एक कार्ड दिया गया था, जो महाराजा लाउंज का था। वहाँ जाकर मैं आराम कर सकता था। मैंने वही किया। मुफ्त में चाय बिस्कुट लिये और वहाँ रखे देशी-विदेशी अखबार देखने लगा। मेरी तरह और भी दो-चार सज्जन वहाँ इन्तजार कर रहे थे। वे भी टोकियो जाने वाले थे।
ठीक 8.45 बजे हमें बुलाया गया। रास्ते में फिर दो बार हाथ के सामान की जाँच हुई। विमान में मुझे एक्जीक्यूटिव क्लास में बैठाया गया। विमान में मेरे लिए नयापन कुछ नहीं था क्योंकि मैं एक बार वाराणसी से दिल्ली विमान यात्रा कर चुका था। नयापन केवल वहाँ के डिनर में था, जो था तो शाकाहारी, परन्तु उसमें बहुत सी नयी चीजें थी, जिन्हें खा पाना मेरे लिए संभव नहीं था। अतः उनको छोड़कर मैंने रोटी-चावल खाये। एक रूमाली रोटी और मंगा ली।
9.30 बजे रात्रि हम दिल्ली से उड़े थे। मुझे नींद आ रही थी, इसलिए खाना खाकर मैं सो गया। करीब 12.30 बजे मेरी नींद खुली। पता चला कि 1 बजे जहाज बैंकाक में उतरेगा। तब तक मैं पूरी तरह जग गया था। मैंने ऊपर से ही बैंकाक का जायजा लिया। कुछ इमारतों और लाइटों के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। करीब आधा घंटा वहाँ रुकने के बाद जहाज फिर उड़ा और उसे उड़ते छोड़कर मैं सो गया।
आगे जब मेरी नींद खुली तो उस समय तक सब सो रहे थे। मैंने जरा खिड़की का पर्दा सरकाया, तो तेज धूप अन्दर आयी। एक-दो लोग चौंक गये तथा आपत्ति की, इसलिए मैंने तुरन्त पर्दा वापस सरका दिया। इतनी देर में ही मैं देख चुका था कि सवेरा हो गया है और वहाँ के हिसाब से 7 बजे होंगे। मुझे ऐसा लगा कि हमारा जहाज बर्फ के पहाड़ों केे ऊपर से उड़ रहा है। फिर मैंने सोचा कि यहाँ बर्फ कहाँ से आयी? मैंने अनुमान लगाया कि ये बादल होंगे। बाद में मेरा अनुमान सही निकला, क्योंकि बोइंग 747 विमान हमेशा बादलों से ऊपर उड़ता है। खिड़की में से धूप इसलिए आयी थी कि हमारा जहाज ठीक उत्तर की ओर उड़ रहा था और मेरी खिड़की पूर्व की ओर थी। हम ओसाका हवाई अड्डे की ओर जा रहे थे।
रास्ते में हमें एक फाॅर्म भरने को दिया गया, जो हमारे स्वास्थ्य के बारे में था। करीब 11.15 बजे (जापानी समय पर) हम ओसाका में उतरे। मुझे वहाँ उतरना नहीं था, अतः निश्चिन्त बैठा था। तभी एक सज्जन मेरा नाम पूछते हुए पधारे। वे सीधे मेरी सीट पर आये और इशारे से पूछा कि क्या मैं ही सुनने में असमर्थ हूँ? मैं समझ गया कि ये श्री हिरानो के निर्देश पर पधारे हैं। मैंने तुरन्त उठकर उनसे हाथ मिलाया। उन्होंने मुझे कुछ औपचारिकताओं के लिए एक सुन्दर लड़की कु. रिसूको तनाका के साथ कर दिया, जो जापान एअर लाइन्स में प्रशिक्षण ले रही थीं।
वे मेरा स्वास्थ्य का फार्म लेकर आगे-आगे चलने लगीं और औपचारिकताएँ पूरी करा दीं। मैं उन दिनों अपने पेट के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा खा रहा था, जो पुड़ियों में थी और उसको शहद के साथ लेता था। इसलिए मैं दवा की पुड़िया और शहद की शीशी साथ ले गया था। उन्होंने उस दवा की कई बार सूँघ-सूँघकर जाँच की कि कहीं ये नशे की पुड़िया तो नहीं हैं। मेरे बताने पर कि यह आयुर्वेदिक दवा है और इस शीशी में शहद है जिसके साथ यह दवा ली जाती है, उन्हें बड़ी मुश्किल से विश्वास हुआ।
कु. तनाका अंग्रेजी बहुत कम जानती थीं, इसलिए मुझे एक-एक शब्द धीरे से बोलना पड़ता था। उन्होंने मुझे बाहर बैठाया और कहा कि अभी आपकी उड़ान होगी तब बुला लेंगे। मैंने पानी पीने की इच्छा जतायी। उन्होंने देखकर कहा कि साॅरी यहाँ पीने का पानी नहीं है। मुझे आश्चर्य तो बहुत हुआ, परन्तु सोचा कि हो सकता है यहाँ भी नल चला गया हो, जैसे हमारे यहाँ चला जाता है। फिर वे कहने लगीं कि अब मैं जाऊँगी। मैंने पूछा क्या आप मेरी उड़ान से पहले फिर लौटेंगी। उन्होंने कहा कि ‘नहीं’। तब मैंने उन्हें सहायता के लिए धन्यवाद देकर विदा किया।
करीब 11.45 बजे हम फिर वहाँ से उड़े और लगभग 1.30 बजे दोपहर बाद नारीता हवाई अड्डे पर उतरे। वहाँ कस्टम से सुलटने में थोड़ा समय लगा और अपना सामान लेकर बाहर आया। वहीं मैंने अपने 100 डालरों को येन में बदलवाया जिनसे मुझे लगभग 12000 येन मिले।
(जारी…)
विजय भाई ,आप की यात्रा के साथ साथ हम भी यात्रा कर रहे हैं , जो इंडिया में हुआ उस के बारे में मुझे कोई हैरानी नहीं . इंडिया उन्ती बहुत कर गिया है लेकिन मानसिक दशा में कोई फरक नहीं आया . आगे का इंतज़ार है.
धन्यवाद, भाई साहब. आपका कहना बिल्कुल सच है. अभी भारतीयों की मानसिकता में बहुत सुधार की जरुरत है.
जापान की धरती पर पदार्पण के साथ आपका दीर्घकालीन मनोरथ पूरा हुआ। हवाई यात्रा में हमने भी आपका सहयात्री होने का अनुभव लिया। अब आगे की घटनाओं को जानने की अभिलाषा है। आज की किश्त के लिए धन्यवाद।
आभार मान्यवर ! मेरे जापान प्रवास की कहानी भी रोचक और रोमांचक है.
जापान की यात्रा के रोचक व रोमांचक विवरणों को जानने की प्रतीक्षा है।