कवितापद्य साहित्य

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार का तो अंत ही न दिखता ,

जहां देखो वहाँ मूहँ फाड़े खड़ा,

मैंने भी आज वही देखा ,

बीच बाजार में खड़ा हुआ |

किसी की नजर ही न पड़ती ,

पड़ती भी तो झुक जाती ,

आखिर क्या है इसमें वो ,

सामने देखे पर कोई न बोलें |

आखिर अब समझ में आई ,

भ्रष्टाचार कोई और नहीं ,

ये तो हम और आप हैं ,

जो इसे सह देकर बढ़ा रहे हैं…

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

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