वक्त की बिसात ….
वक्त ने बिछायी है कुछ ऐसी बिसात ,
अपने ही तो कर रहे हैं अपनों पर वार !!
भावनाओं का रहा नहीं अब कोई मोल ,
पैसा हावी हो रहा रिश्ते हुये अब बेमोल !!
वफाओं का जिक्र भी मतलब के लिए होता ,
तभी चैन-ओ-सुकून की नींद कहाँ कोई सोता !!
नैतिकता का उलंघन सरेआम आज हो रहा ,
इंसानों द्वारा ही आज इंसानियत का खून हो रहा !!
किसके पास वक्त है आज इबादत के लिए ,
खुदा को भी लोग याद करते हैं मतलब के लिए !!
प्रवीन मलिक ^_^