कविता

वक्त की बिसात ….

वक्त ने बिछायी है कुछ ऐसी बिसात ,
अपने ही तो कर रहे हैं अपनों पर वार !!

भावनाओं का रहा नहीं अब कोई मोल ,
पैसा हावी हो रहा रिश्ते हुये अब बेमोल !!

वफाओं का जिक्र भी मतलब के लिए होता ,
तभी चैन-ओ-सुकून की नींद कहाँ कोई सोता !!

नैतिकता का उलंघन सरेआम आज हो रहा ,
इंसानों द्वारा ही आज इंसानियत का खून हो रहा !!

किसके पास वक्त है आज इबादत के लिए ,
खुदा को भी लोग याद करते हैं मतलब के लिए !!

प्रवीन मलिक ^_^

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....