वाल्मीकि रामायण में नास्तिक जाबाली का चार्वाक उपदेश-
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के सर्ग 108 के श्लोक 1 से 17 तक में जाबाली की कथा है जो राम को उपदेश देते हुए कहता है –
हे राम मैं उन व्यक्तियों के लिए चिंतित हूँ, जो इस लोक की चिंता छोड़ के परलोक की चिंता में डूबे रहते हैं। जो अवैज्ञानिक चिन्तन पर आधारित राजव्यवस्था की कोरी कल्पना, शरीर और आत्मा में भेद मानकर , पुनर्जन्म की कल्पना में जीवन नष्ट करते हैं और आकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं । जो प्रतिवर्ष अपने मरे हुए पितरो को श्राद्ध के नाम पर अन्न नष्ट करते हैं। आप बताइये की क्या मृत व्यक्ति भोजन खा सकता है ? या ब्राह्मणो को भोजन खिलाने से उनके सम्बन्धियो की की भूख शांत हो सकती है ?। यदि ऐसा है तो यात्री अपने साथ भोजन बाँध कर क्यों ले जाता है? क्यों नहीं यात्रियों के संबंधी उनके भूख के समय ब्राह्मणो को भोजन कराकर यात्रियों की भूख शान्तं करते?
वास्तव में ये कहानियां उन चतुर व्यक्तियो द्वारा गढ़ी हैं जो भोले नासमझ लोगो को मुर्ख बना उन्हें लूटने में सिद्धहस्त थे। उन्होंने जनसाधारण को दान दक्षिणा देने , यज्ञ करने, हवन कथा करने, भूखे व्रत उपवास कराने के तरीके का अविष्कार कर स्वयं बिना मेहनत के धन प्राप्त करते हैं ।
अत: हे राम !आप बुद्धि से काम लो। इस जीवन के अतरिक्त और कोई जीवन मिलने वाला नहीं है , यह निश्चित माने।
रामायण में जो बाते जाबाली के मुंह से कहलवाई गई है वह सारी बाते आचार्य चार्वाक ने कही है
जैसे की चार्वाक का श्राद्ध के बारे में यह श्लोक प्रसिद्ध है –
मृतानामपि जन्तुना श्राद्ध …….. कल्पनम्
अर्थात यदि श्राद्ध से मरे हुए लोगो को तृप्ति मिलती तो पथिक को भोजन लेके चलने की क्या आवशयकता?
इसी तरह से चार्वाक ने यज्ञ, हवन , व्रत , स्वर्ग नर्क, ईश्वर अदि भी धूर्तो द्वारा निर्माणित बताते हैं।
तो क्या जाबाली जो कहता है वह चार्वाक दर्शन यानि लोकायत से कहता है? इसका अर्थ क्या यह समझा जाए की चार्वाक दर्शन का उपदेश देने वाला जाबालि कंही चार्वाक का अनुयाई तो नहीं था?या जाबाली ही चार्वाक था जिसे ब्राह्मणो ने नाम बदल के पेश किया ? हलाकि की बाद में रामायण लेखक ने स्वयं जाबाली के मुंह से ही कहलवा दिया है की यज्ञ, हवन , स्वर्ग नरक आदि यदि कोई माने तो अच्छा है पर ऐसा लगता है की वह राम और वशिष्ठ के क्रोध होने पर जाबाली ऐसा मान लेता है और कहता है की पहले वह नास्तिक था ।
मुझे लगता है और यही सत्य है कि जाबालि विषयक लेख में प्रस्तुत अंश रामायण के प्रक्षिप्त अंश है। मैंने जाबाला नामक एक माँ का विवरण तो प्राचीन ग्रंथों में पढ़ा है जिसके पुत्र ने उससे अपना गोत्र पूछा था। माँ ने इस पर अपनी असमर्थता व्यक्त की और कहा कि तू विद्या के आचार्य को यह बता देना। उसने जब गुरुकुल पहुँच कर माता द्वारा सूचित सत्य विवरण का वर्णन किया तो आचार्य जी ने कहा कि जो माता और पुत्र सत्य बोलतें हैं, वह उच्च कुल के होते हैं और उसे गुरकुल में प्रवेश दे दिया था। आज यज्ञ, हवन, व्रत, उपवास, स्वर्ग व नरक आदि का वास्तविक महत्व हमें पता है जो जीवन के लिए अतिउपयोगी है। अतः ज्ञान की आँखों से वंचित कोई मनुष्य ही इन्हे गलत कह सकता है।
सड़क किनारे शराब पीकर पड़े हुए नास्तिक जाबाली को कोई आदर्श थोड़े ही मानता हैं जो उसके नाम को अपने पूर्वजों की भाँति नास्तिक लोग स्मरण करते घूमते हैं