विपश्यना ध्यान से छलकता गिलास
संस्थान और घर में बढ़ता तनाव, माइग्रेन से बढ़ते सिरदर्द, बेअसर दवायें, तन थका, मन टूटा, अवसाद की स्थिति। ऐसी स्थिति में सितम्बर 2001 में जयपुर में विपश्यना ध्यान केन्द्र में 10 दिवसीय शिविर में साधक बना, एक अलौकिक अनुभव, 9 दिन का आर्य मौन, 12 घंटे सांस-शरीर का अंतर्मुखी बन संवेदनाओं को महसूस कर रागद्वेष कम कर समय का सार्थक सदुपयोग कर, सादा भोजन ग्रहण कर, सायं गुरुजी श्री सत्यनारायण गोयनका जी के शुद्ध धर्म पर वार्ताएं सुनकर शुद्धधर्म को जान, समझ, सीख एवं अभ्यास कर जीवन का खाली होता गिलास आधा तो भर ही गया।
शिविर में गृहस्थ जीवन से निष्क्रमण, संजीवनी का काम कर गया। समतस संतुलन में बढ़ोत्तरी, क्रोध में कमी, कार्यालय में कार्यदक्षता में वृद्धि, घर पर भी कुछ शांति सी, सिर का घटता दर्द।
2003 में जीवनसंगिनी की मृत्यु से पुनः एक तूफान सा झटका, 17 वर्ष की इकलौती संतान बेटी, 80 वर्षीया अशक्त मां। विपश्यना में सीखी बातें समता-संतुलन से तूफान में भी आशा के दीपक को प्रज्ज्वलित रखने का प्रयास एक रामबाण दवा का सा काम कर गयीं। संस्थान से2007 में सेवानिवृत्त हो गया। 2010 में मां की संसार से मुक्ति, बेटी को भी मनभावन जीवनसाथी मिल गया। 2001 में आधा भरा गिलास कर्तव्यों की अग्निपरीक्षाओं से पुनः खाली सा होने लगा।
अणुनगरी रावतभाटा में ही जयन्त भाई द्वारा जनवरी 2012 में विपश्यना कोर्स में पुनः 10 दिन का गृहस्थ जीवन से निष्क्रमण। पुनः मन की बैटरी चार्ज हुई। गिलास 75 प्रतिशत भर गया। विपश्यना कोर्स में सीखा समय प्रबंधन। इस विषय पर बच्चों के लिए पुस्तक लिखने, स्कूलों में कैरियर पर वार्ता देने में सहायक हुआ। दान की पारणी पर अमल कर आय का 2 से 5 प्रतिशत निर्धन मेधावी छात्राओं की शिक्षा पर देना प्रारम्भ किया। बेटी के परिवार में अतिथि कम, भिक्षु सा अधिक बन, आश्रय पाकर बच्चों को संस्कार, शिक्षा, आनापान के लाभ पर संदेश देता रहा।
67 वर्ष के जीवन में अपे्रल 2015 में पुनः रावतभाटा अणुनगरी में ही 10 दिवसीय शिविर में साधक बन जीवन के गिलास को पूरा भरा ही नहीं छलकता बनाकर 14 अप्रेल से पुनः गृहस्थिन बेटी के यहां यह विधुर पिता पुनः अतिथि/भिक्षु बनकर लौटा हूं।
सहआचार्य श्री सुरेश खन्ना जी एवं रावतभाटा विपश्यना केन्द्र के संत सदृश श्री जयंत खोबरागड़े के लिए दिलीप साधक ही दिल से कृतज्ञता। मंगल हो।
— दिलीप भाटिया
sty ek hai ..us or jaane ke raaste anek hain ..
बहुत अच्छा लगा पड़ कर , जीवन एक संघर्ष ही तो है , यदि किसी भी ढंग से तनाव घट हो जाए अच्छा ही तो है.
बहुत अच्छा और प्रेरक संस्मरण !