कुछ लघुकथाएं
निर्णय
सरकारी स्कूल का बोर्ड – पोषाहारार्थ प्रवेश, नरेगार्थ प्रस्थान
प्राइवेट स्कूल का बोर्ड- दानदाताओं को प्रवेश, पैकेज हेतु भाग्य परीक्षण हेतु प्रस्थान
सात्विक एवं कल्पना निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि किस स्कूल में अपने लाड़ले पार्थ का प्रवेश करायें।
टेंकर
कैरियर समस्या समाधान हेतु विज्ञापन अपील संदेश के पश्चात् भी दीपक जी के कुएं के पास प्यासे कम ही आ पाते।
नये जमाने के साथ स्वयं को दीपक जी ने बदल लिया। अब वे टेंकर की भूमिका निभाकर स्वयं ही इच्छुक प्रतिभागियों के पास चले जाते हैं।
सेवा
कंचन सिंह के दो पुत्र उच्चशिक्षा प्राप्त कर अच्छे पैकेज के लोभ में विदेश प्रस्थान कर वहीं सैटल हो गये। तीसरा पुत्र सेना में मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। उसकी पत्नी श्रेया का कंचन ने पुनर्विवाह करा दिया। आज वृ़द्धावस्था में कंचन की सेवा बहू बेटी बेटा सबकुछ बनकर श्रेया ही कर रही है।
वंश
मोहन प्रसाद के वंश का नाम चार पुत्रों के होते हुए भी डूब गया। उनके व्यवहार, बुरी आदतें, व्यसन, दुराचार के कारण।
हरीश कुमार के वंश का नाम पुत्र नहीं होते हुए भी उनकी समाजसेवा एवं प्रकाशित पुस्तकों के कारण प्याऊ, धर्मशाला, लाइब्रेरी, स्कूलों में भामाशाह बन निःस्वार्थ दान इत्यादि सत्कर्मों से आज भी चल रहा है।
— दिलीप भाटिया
लघुकथाएं अच्छी लगी , ख़ास कर सेवा और वंश .
अच्छी लघुकथाएं ! विशेष रूप से ‘वंश’ लघुकथा बहुत प्रेरक है.