लघुकथा

बदलते भाव

“मर गया नालायक! देख, कितना खून पिया था। उड़ भी नहीं पाया, जबकि खतरा महसूस कर लिया होगा जरूर ही इसने|”

“अरे मम्मी, आप दुखी नहीं है अपना ही खून देख?”

“नहीं, क्योंकि मेरा खून आज इसका हो गया था।”

“आप भी न, उस दिन उँगली कटने से आपका एक बूँद खून बह गया था तो आपके आँसू ही नहीं रुक रहे थे। और आज एक बूँद अपना खून देखकर आप खुश है| आपकी लीला आप ही जानें।”

”जब कुछ मेरा है तो बस मेरा ही होता है, तब उसके नष्ट हो जाने पर कष्ट होता है। पर मेरा होकर भी जो मेरा न रहे, तब उसके नष्ट हो जाने पर मन को संतुष्टि होती है। समझा?”

“बस मम्मी, आप और आपके ये लॉजिक, बस। लेक्चर देने के ही फ़िराक में रहती हैं आप।”

सविता मिश्रा 

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “बदलते भाव

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया लघु कथा !

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