जनता परिवार का महाविलय क्या परिवर्तन ला सकेगा ?
पूरे भारत में धीरे-धीरे भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर आखिरकार जनता परिवार एक बार फिर एकजुट हो रहा है। 15 अप्रैल 2015 को समाजवादी पार्टी, जदयू, राजद, जद-एस, आइएनएलडी, और समाजवादी जनता पार्टी का विलय हो गया। बिहार में छह माह बाद विधानसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने के लिए यह गठजोड़ विशेष रूप से किया जा रहा है। यह विलय अभी तक कांग्रेस को रोकने के नाम पर किया जाता था लेकिन अब इसका स्वरूप बदल गया है और यह भाजपा रोको अभियान के रूप में बदल गया है।
यह विलय पूरी तरह से जातिवाद और वंशवाद पर आधारित है। यह विलय केवल मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने के लिए बना हैं। इस प्रकार के गठबंधन पूरे देश में सरकारें तो नहीं बना सकते हैं केवल देश के विकास को अस्थिर कर सकते हैं। विलय में शामिल सभी दलों और नेताओं का राजनैतिक कैरियर पूरी तरह से खतरे में हैं। अधिकांश नेताओं को यह साफ पता चल गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार सफलतापूर्वक अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी। यह सभी दल राज्यसभा में भाजपा के बहुमत में न होने का लाभ उठाना चाह रहे हैं और मोदी सरकार को पटरी से उतारकार अपना भविष्य संवारना चाह रहे हैं।
स्वयं को तथाकथित समाजवादी कहने वाले ये सभी राजनैतिक दल कभी भी एकजुट नहीं रह सके हैं। कभी तीसरे मोर्चे की तान छोड़ते है कभी चौथे मोर्च की। हर प्रांत में हर दल का अपना एक अलग वोट बैंक हैं। इस समय जनता परिवार यदि कहीं सर्वाधिक सक्रिय है तो वह है बिहार और उप्र। इस विलय का सर्वाधिक असर बिहार और उप्र में ही दिखलाई पड़ सकता है। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक नयी चुनौती अवश्य मिलती हुई प्रतीत हो रही है। यहां पर विगत दशकों में राजद नेता लालू यादव ने मुस्लिम-यादव वोट बैंक के सहारे 15 वर्षो तक राज किया है। अब इसमें जनता दल यू का वोट बैंक भी शामिल हो जायेगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार इस महाविलय के लिए सर्वाधिक सक्रिय रहे।
इस विलय के पश्चात जनता परिवार में आशंका मिश्रित उत्साह देखने को मिलने लगा है। इस नये परिवार के साथ कांग्रेस का गठबंधन भाजपा के लिए भारी चुनौती बन सकता है और यहां तक कि भाजपा के लिए वाटरलू भी बन सकता हैं। इसलिए बिहार में भाजपा गठबंधन को नये सिरे से अपनी रणनीति बनानी पडे़गीे। बिहार में एक बात और हो सकती है कि जिस प्रकार दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए सभी दलों व मुस्लिमों ने अपने सारे के सारे वोट अंतिम क्षणों में आम आदमी पार्टी को डलवा दिये थे उसी प्रकार का नजारा बिहार में भी देखने को मिल सकता है। यहां पर सभी भाजपा विरोधी एकजुट होकर अपने सारे मत नीतिश कुमार की झोली में डाल सकते हैं।
इस विलय का सर्वाधिक असर बिहार में ही पड़ने वाला है। अभी तक बिहार में राजद और जनता दल यू के लोग अलग – अलग चुनाव लड़ते थे लेकिन अब सबकुछ एक साथ एक मंच पर होगा। अभी बिहार में यह भी देखना होगा कि क्या इन दलों का वोट बैंक आपस में एकजुट हो पाया है कि नहीं। अभी टिकटों का बंटवारा होगा तब क्या स्थिति बनती है। अब भाजपा नीतिश कुमार पर सीधे हमले न करके पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के भ्रष्ट शासन को निशाना बना रही है। बिहार में बदलाव की स्थिति जिलाध्यक्ष, प्रखंड स्तर तक जायेगी। जब यह परिवर्तन होंगे तब हर पार्टी में कुछ न कुछ बगावतों के स्वर भी उठेंगे।
वैसे भी इन दलों के नेता भी अपनी बयानबाजियों के कारण अब सत्ता से दूर ही रहें तो अधिक अच्छा हैं। इन दलों में शामिल सभी नेता अमर्यादित बयानबाजी करते है। कुछ नेता तो आय से अधिक संपत्ति सहित भ्रष्टाचार के कई मामलों में फंसे हैं व भविष्य में फंस भी सकते हैं। जनता परिवार के महाविलय की योजना बनाने वाले शरद यादव कभी दक्षिण भारतीय महिलाओं पर बयान देते हैं तो कभी पदम पुरस्कारों पर कहते हैं कि यह पुरस्कार बेईमानों को दिये जाते हैं। ये लोग हर राष्ट्रीय सम्मान का जातिगत व धार्मिक आधार पर राजनीतिकरण करते है। इन दलों के पास देश के विकास के लिए कोई नयी सोच नहीं है। ये लोग केवल और केवल कमजोर वर्ग के लोगों को भड़काकर अपना राजनैतिक स्वार्थ साधने का प्रयास करते हैं। इन दलो के पास किसानों की वास्तविक भलाई के लिए, बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी के दंश से मुक्ति दिलाने की कोई योजना नहीं है।
इन सभी दलों ने कांग्रेस के साथ पूर्व में कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार से सत्त्ता का सुख भोगा है। आज देश की बर्बादी के लिए यही दल जिम्मेदार है। यह लोग देश के मुसलमानों को भाजपा व मोदी का भय दिखाकर अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते है। यह सभी दल व नेता केवल सत्ता के लालच में एकजुट हुए हैं ताकि इस देश का विकास न हो सके। इन दलों का भविष्य आंशिक रूप से सुधर तो सकता है लेकिन 2019 अभी बहुत दूर है। भविष्य कई ऐतिहासिक राजनैतिक घटनाओं व संभावनाओं का इंतजार कर रहा है। अब देश की जनता विकास चाहती हैं। अब जातिवादी व मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति बहुत अधिक दिनों तक नहीं चलने वाली है।
सोशल मीडिया में भी जनता परिवार की एकजुटता वायरल हो रही है। सोशल मीडिया में भी एक टिप्पणी आई है कि,“इस परिवार में जनता तो हैं ही नहीं, केवल परिवार ही हैं. भ्रष्टाचारियों और तुष्टीकरणवादियों का सरकार। मोदी से डरे सहमे लोगों का परिवार। ” सर्वाधिक सच्चाई यह है कि अधिकांश नेता अपने पूर्व भ्रष्टाचार और सीबीआई के शिकंजे से डरे हैं। इसलिए आम जनता को भड़का रहे हैं। यह दल केवल अपनी सीट बचाने की जुगत के लिए एकजुट हुए हैं। अतः बहुसंख्यक हिंदू समाज व भविष्य के उन युवा मतदाताओं को भी सावधान होे जाना चाहिए जो कि विकास के साथ अयोध्या में भव्य राममदिंर के निर्माण का भी सपना पाले है।
— मृत्युंजय दीक्षित
यह कोई विलय नहीं है. केवल संकटकालीन गठबंधन या ठग-बंधन है. जब तक अलग अलग नेताओं के अहंकार और स्वार्थ ख़त्म नहीं होते तब तक इसका एक पार्टी के रूप में काम करना असंभव है. इसका अधिक से अधिक असर यह होगा कि वोटों का बंटवारा कुछ हद तक रुक जायेगा, बशर्ते चुनाव कि टिकटों के बंदरबाट में जूतमपैजार न हो.