माहिया
काँटों में कलियाँ हैं
बिटिया की बतियाँ
मिसरी की डलियाँ हैं ।१
क्या थी कुव्वत मुझ में
बाँट दिया रब ने
माँ ! बिटिया में , तुझ में । २
क़िस्से दिन रातों के
संग खिलौने हैं
मीठी सी बातों के । ३
मिलने की आस बँधी
झूम उठी बगिया
फूलों से ख़ूब लदी । ४
क्यों नैन भिगोती है
बंद सदा रखना
मुट्ठी में मोती है । ५
ढूँढो तो राह मिले
स्नेह सहित सींचे
ख़ुशियों के फूल खिले । ६
जग जान कहाँ पाया
मर्यादा भूला
मन मान कहाँ पाया । ७
वादे से मुकर गए
ख़्वाब बहारों के
पलकों पे गुज़र गए । ८
नैनों में सपने हैं
दुर्दिन कह जाएँ
कब ? कितने ? अपने हैं । ९
दीं चोटें फूलों ने
बींध दिया मनवा
सुधियों के शूलों ने । १०
कुछ बढ़ कर अटक गए
यश पाया थोड़ा
फूले, पथ भटक गए । ११
अनुभव ने सिखलाया
चंदन थे , जग ने
विषधर बन दिखलाया । १२
रुत आनी जानी है
सुख-दुख साथ चलें
ये रीत पुरानी है । १३
इतना उपकार करो
मेरी भी नैया
माँ ! भव से पार करो । १४
पग-पग पर हैं पहरे
बख्शे दुनिया ने
हैं ज़ख़्म बहुत गहरे । १५
— डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
अच्छी माहिया कवितायेँ ! वाह !
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय !