क्षणिकायें
१-तेरा पता
तुम्हें खत रोज लिखता हूँ
तेरा पता मालूम नहीं
तेरी खुश्बू से महकता हूँ
रूबरू तुझसे मिला नहीं
२-बात
बात नहीं होती तब भी बात होती है
बात करने के लिए
अब सामने होना तेरा
ज़रूरी नहीं है
३-सोहबत
जिनसे है मुझे मोहब्बत
उनकी तस्वीर के साथ है
मेरी सोहबत
४-वफ़ा
कब हो जाए खफा
कब निभाने लगे
फिर से वो वफ़ा
न चल पाया
मुझे आज तक
यह पता
५–दिन
जीवन में होते है कुल दिन चार
दो दिन तुमसे परिचय होने में बीत गए
शेष दो दिन व्यतीत हो रहे हैं
करते हुए तुम्हारा इंतज़ार
६-निगाहों में
मुझे अपनी निगाहों में बसा लो
चाहे फिर मुझे रुला लो हँसा लो
७-सलूक
उसने किया ही मुझसे कुछ ऐसा सलूक
कि मिट गया मेरा वज़ूद
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत सुन्दर
अच्छी क्षणिकाएं !