इंतज़ार
दिन गुजर गया इंतज़ार में उनके,
कहीं रात भी न ढल जाये !
बहुत मल -मल के धोया चेहरे को,
पर उनकी यादों के निशाँन न जायें!
फ़िर तेरी गज़लों को पढने बेठे,
लफ़्ज़ों से तेरे मेरा जिस्म पिघल जाये!
रिश्तों के धागे नाज़ुक हैं बडे,
काँच के जैसे इन्हें संभाला जाये!
मेरे अरमानों को इस तरह तोडा उसने,
शाख से कोई फ़ूल को तोड लिया जाये!
बदलते मौसम की तरह पल भर मैं,
रंग चेहरों के यहाँ बदल जायें !
इंतज़ार में बीत गयी “आशा” रात आधी,
चलो अपने बदन को ही ओढ के सोया जाये!
…राधा श्रोत्रिय”आशा”