ईश्वर,गुरु और आत्मा।
ईश्वर भाग्य विधाता ही नहीं बल्कि,
इस सृष्टि के पालनकर्ता, रचनाकार हैं।
सूक्ष्म से लेकर विशालकाय जीवों में,
आत्मा रूप अंश को देते आकार है।
इन छोटे बड़े जीवों को आदि से ही,
सीखने-सीखाने का गुरु देते हैं प्रकार।
नैतिकता की बातें सीखकर ये लोग,
कर लेते हैं अपने जीवन को साकार।
जब प्रार्थना करने से मिल जाता है ज्ञान,
आत्मा के रास्ते मन में बना लेता है आकार।
जब ईश्वर प्रार्थना के जरिए ही आत्मा से,
कर लेता है मिलन हो जाते हैं एक प्रकार ।
———-रमेश कुमार सिंह
कविता अच्छी है। सैद्धांतिक दृष्टि से असहमति है। सभी जीव-आत्माएं आकार में एक समान हैं। शरीर छोटे व बड़े होते हैं आत्माएं नहीं। आत्मा किसी का अंश नहीं है अपितु एक अनादि, अनुत्पन्न, नित्य, अजन्मा, अविनाशी व अमर सत्ता है। ईश्वर अखंड होने से उसके अंश नहीं होते। यह भी दर्शनों का निष्कर्ष है कि जीवात्मा व आत्मा कभी एक नहीं हो सकते। सत्य के अर्थ के प्रकाश के लिए यह पंक्तियाँ लिखीं हैं, और कोई उदेश्य नहीं है। यदि आप सत्यार्थ प्रकाश पढ़ना चाहें तो मैं इसकी पीडीएफ प्रति पठनार्थ आपको भेज सकता हूँ. सादर।
आभार! जरूर भेजें श्रीमान जी।
बढ़िया !
नमस्ते महोदय। आपको सत्यार्थ प्रकाश की पीडीएफ प्रति भेजी थी। आशा है मिल गई होगी। सूचनार्थ।
धन्यवाद श्रीमान जी।