कविता —”वक्त-बेवक्त तुम याद आते हो”
वक्त -बेवक्त तुम्हारी दुवाओं का असर हो रहा है
तुम्हारे होने का असर, चारो पहर हो रहा है…….
चुप रहकर भी तुम बहुत कुछ कह जाते हो ,
बस एक गिला है, सब आँखों ही आँखों में कह जाते हो …..
खैर छोड़ो भी,इन सब बातों को ,
बस इतना बता दो,क्यों छुपाते हो अपने जज़्बातों को ……
तुम्हारे यादों की हर शोखियों को सरगम बना गुन -गुनाते हैं ,
जब भी ख्यालों में खुद को तुम्हारे बहुत नजदीक पाते हैं ………..
चुप रह कर भी तुम ,इशारों में बतियाते हो ,
सच है, तुम वक्त-बेवक्त बहुत याद आते हो……
वादे ……जो कभी मुकम्मल न हो सके ,
कभी वक्त की कमी रही ,कभी हम खुद वक्त के पाबंद न रहे …..
एक तुम्हारा साथ…..जिसके लिए हम उम्र भर तड़पते रहे ,
कभी आँसू बन बहे तो कभी कोरे कागज पर स्याही बन बिखरते गए …|
— संगीता सिंह ‘भावना’
वाह वाह !
बहुत सुन्दर शब्द .